Wednesday, December 31, 2008

नव वर्ष मंगलमय हो

युग मानस के पाठकों एवं लेखकों को नव वर्ष की हार्दिक मंगल कामनाएँ ।

आया नव वर्ष आया

- विजय कुमार सप्पाटि, हैदराबाद

आया नव वर्ष, आया आपके द्वार
दे रहा है ये दस्तक, बार बार !

बीते बरस की बातों को, दे बिसार
लेकर आया है ये, खुशियाँ और प्यार !
खुले बाहों से स्वागत कर, इसका यार
और मान, अपने ईश्वर का आभार !

आओ, कुछ नया संकल्प करें यार
मिटायें, आपसी बैर, भेदभाव, यार !
लोगो में बाटें, दोस्ती का उपहार
और दिलो में भरे, बस प्यार ही प्यार !

अपने घर, समाज, और देश से करें प्यार
हम सब एक है, ये दुनिया को बता दे यार !
कोई नया हूनर, आओ सीखें यार
जमाने को बता दे, हम क्या है यार !

आप सबको है विजय का प्यारा सा नमस्कार
नव वर्ष मंगलमय हो, यही है मेरी कामना यार !

आया नव वर्ष, आया आपके द्वार
दे रहा है ये दस्तक, बार बार !

मुबारक हो सब को नया साल

डा. एस बशीर,चेन्‍नै

नव वर्ष का, नव हर्ष का
उत्‍कर्ष का, सौहार्द्र का
स्‍वागतम…… सुस्‍वागतम।
बीत गया जो साल पुराना
वेदना, क्रंदन, तूफान व आतंक का
खून व आसूं भरे दास्‍तान का।
नये साल में कहीं न हो अकाल
दंगे व फसादों से न कोई हो बेहाल
इनसानियत के जज़्बात से सब हो माल।
मुबारक ये नया साल।
दीप जले, चाँद सूरज चमके
दसों-दिशाओं में रोशनी फैलें
फूल खिलें, चंदन महकें
विश्‍व के चमन में, अमन की,फि़ज़ा रहें
चेहरों पर निखार, आंखों में रोशनी ।
दिल में उमंग – होठों पर सदा मुस्‍कान रहें
धर्म सभी, मानवता मिसाल बतायें
प्रीत के, रीत के, गीत सदा गुन गुनायें
दुवा है ये दोस्‍त की..........
खुदा आमीन करें..........
जीवन की गरिमा को
हर मन की मुरादे को
सदा सरताज़ रखें।

Monday, December 15, 2008

अजय मलिक की दो कविताएँ


मैं काँटों को भी दर्द का अहसास कराना चाहता हूँ...

मैं काँटे बोता हूँ
अंकुरित होने पर
खूब सींचता हूँ
उग आने पर
चाव से उनपर चलता हूँ
और फ़िर से सींचता हूँ
काँटों की प्यास बुझने पर
मुस्कराते हुए मैं
अपने रक्त रंजित पैरों के
ज़ख्मों को सहलाता हूँ
एक-एक कर सारे काँटों को
संभालकर निकालता हूँ
मरहम लगाने से मुझे भी
चैन मिलता है मगर
काँटों को बुरा लगता है
पाँव ठीक होने पर मैं
फ़िर से कांटे बोता हूँ
फ़िर से वही सब दोहराता हूँ
हर बार मेरे पांवों से
रक्त बह जाता है
दर्द रह जाता है
पता नहीं काँटों को
खून में मिले दर्द को पीने में
मज़ा क्यूं नहीं आता, पर
मैं काँटों को भी दर्द का अहसास कराना चाहता हूँ ।


*****


नहीं गीत में गीत...

नहीं गीत में गीत बचा
नहीं ताल में ताल कहीं
न सुर में संगीत शेष है
न लय न झंकार कहीं

बादल में न बूँद शेष है
नहीं बचा है वेग पवन में
क्या सीपी की आस बचे, जहँ
धूल-धुँध भर, भरी गगन में

कहाँ गए सब बाग़ बगीचे
कहाँ ‘व’ दूब की हरियाली
कहाँ झील सी आँख मिले, जब
होठों तक न बची लाली

सरकारी पानी के नल हैं
पनघट कहाँ, कहाँ अब नीर
कैफ़े की यहाँ केक पेस्ट्री
सपना बनी अमावसी खीर

पार्क बन गए ‘उपवन’ सारे
महक रहे मलबे के ढेर
खेत बने बंगलों के गमले
माटी बिकी रूपए की सेर

पेशे से है यहाँ मित्रता
अर्थ नहीं कुछ मुस्कानों का
नहीं जानते ! शहर यह है
पत्थर के बुत इंसानों का ।

*****

Thursday, December 11, 2008

दिव्या माथुर की तीन कविताएँ

आरोप

झोंपड़े की
झिर्रियों से
झर के आते झूठ
ख़सरे से फैलने लगे

बदन पर मेरे

कितने छिद्रों को बंद करती
केवल अपने दो हाथों से

सच को सीने में छिपा
मैं जलती चिता पर
बैठ गई न रहीं झिर्रियाँ
न झोंपड़ान ही झूठ!


आशंका

मेरी मुंडेर पर कौआ रोज़ रोज़
काँव काँव करता है

कमब्ख़त कितना झूठ बोलता है

और काली बिल्ली

जब तब रास्ता काट जाती है
आशंका के विपरीत
कुछ नहीं होता!

सती हो गया सच

तुम्हारे छोटे, मँझले
और बड़े झूठ
खौलते रहते थे मन में
दूध पर मलाई सा
मैं जीवन भर
ढकती रही उन्हें

पर आज उफ़न के
गिरते तुम्हारे झूठ
मेरे सच को
दरकिनार गए
मेरी ओट लिए
तुम साधु बने खड़े रहे
और झूठ की चिता पर
सती हो गया सच!

Tuesday, December 9, 2008

कविता



प्‍यार एक खेल नहीं!


- डी. अर्चना, चेन्‍नै


मुश्किल है अपना मेल प्रिये,
यह प्‍यार नहीं है खेल प्रिये।
तुम “एम .ए” फर्स्‍ट डिविजन हो,
मैं हुआ “मैट्रिक” फेल प्रिये।
मुश्किल है अपना मेल प्रिये,
यह प्‍यार नहीं है खेल प्रिये।
तुम फौजी अफ़सर की बेटी,
मैं तो किसान का बेटा हॅू।
तुम ‘ए.सी’ घर में रहती हो,
मैं झोंपडी में रहता हूं।
तुम नयी मारूती लगती हो,
मैं पुराना स्‍कूटर लगता हॅू।
इस तरह अगर हम छुप छुप कर
आपस में आंखें मिलाते तो,
एक रोज़ तेरे पप्‍पा अमरेशपूरी बनकर,
हड्डी फसली एक कर जेल भेंजेंगे प्रिये।
मुश्किल है अपना मेल प्रिये,
यह प्‍यार नहीं है खेल प्रिये।
अब नज़ारों का मेल
सांसों का यह जंतर मंतर
हमेशा केलिए अलबिदा प्रिये।

Sunday, December 7, 2008

विजय कुमार सप्पट्टि की तीन कविताएँ


विजय कुमार सप्पट्टि की कविताएँ



(कविता लेखन, चित्र-लेखन, फ़ोटोग्रफी, अध्यात्म आदि में विशेष रुचि रखने वाले श्री विजय कुमार सप्पट्टि सिकंदराबाद में वरिष्ठ महाप्रबंधक (विपणन) के रूप में कार्यरत हैं । विजय कुमार जी की तीन कविताएँ यहाँ प्रस्तुत हैं । इन कविताओं पर प्रतिक्रियाओं का स्वागत है । - सं.)

सिलवटों की सिहरन

अक्सर तेरा साया
एक अनजानी धुंध से चुपचाप चला आता है
और मेरी मन की चादर में सिलवटे बना जाता है ...

मेरे हाथ, मेरे दिल की तरह
कांपते हैं, जब मैं
उन सिलवटों को अपने भीतर समेटती हूँ ...

तेरा साया मुस्कराता है और मुझे उस जगह छू जाता है
जहाँ तुमने कई बरस पहले मुझे छुआ था,
मैं सिहर सिहर जाती हूँ, कोई अजनबी बनकर तुम आते हो
और मेरी खामोशी को आग लगा जाते हो …

तेरे जिस्म का एहसास मेरे चादरों में धीमे धीमे उतरता है
मैं चादरें तो धो लेती हूँ पर मन को कैसे धो लूँ
कई जनम जी लेती हूँ तुझे भुलाने में,
पर तेरी मुस्कराहट,
जाने कैसे बहती चली आती है,
न जाने, मुझ पर कैसी बेहोशी सी बिछा जाती है …

कोई पीर पैगंबर मुझे तेरा पता बता दे,
कोई माझी, तेरे किनारे मुझे ले जाए,
कोई देवता तुझे फिर मेरी मोहब्बत बना दे...
या तो तू यहाँ आजा,
या मुझे वहां बुला ले...

मैंने अपने घर के दरवाजे खुले रख छोड़े है ... ।


***


तू

मैं अक्सर सोचती हूँ
कि,
खुदा ने मेरे सपनो को छोटा क्यों बनाया
करवट बदलती हूँ तो
तेरी मुस्कारती हुई आँखे नज़र आती है
तेरी होटों की शरारत याद आती है
तेरे बाजुओ की पनाह पुकारती है
तेरी नाख़तम बातों की गूँज सुनाई देती है
तेरी क़समें, तेरे वादें, तेरे सपने, तेरी हकीक़त ..
तेरे जिस्म की खुशबु, तेरा आना, तेरा जाना ..
एक करवट बदली तो,
तू यहाँ नहीं था..
तू कहाँ चला गया..
खुदाया !!!!
ये आज कौन पराया मेरे पास लेटा है... ।


***


बीती बातें

दिल बीती बातें याद करता रहा
यादों का चिराग रातभर जलता रहा
नज़म का एक एक अल्फाज़ चुभता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा

जाने किसके इंतजार में
शब्बा ऐ सफ़र कटता रहा
जो गीत तुमने छेड़े थे
रात भर मैं वह गुनगुनाता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा

शमा पिगलती ही रही थी
और दूर कोई आवाज दे रहा
जुबां जो न कह पा रही थी
अश्क एक एक दास्तां कहता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा


यादें पुरानी आती ही रहीं,
दिल धीमे धीमे दस्तक देता रहा
चिंगारियां भड़कती ही रहीं
टूटे हुए सपनों से कोई पुकारता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा

दिल बीती बातें याद करता रहा
यादों का चिराग रातभर जलता रहा
नज़म का एक एक अल्फाज़ चुभता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा ।

Thursday, December 4, 2008

राजभाषा कर्मियों को छठे वेतन आयोग की सिफारिशों का लाभ ....

राजभाषा-कर्मियों को आखिर अब तो मिलेगा न्याय

छठे वेतन आयोग की रिपोर्ट के आलोक में भारत सरकार के मंत्रालयों एवं अधीनस्थ कार्यालयों के राजभाषा कर्मियों को केंद्रीय सचिवालय हिंदी सेवा के कर्मियों के समतुल्य वेतन की सिफ़ारिश की गई थी । इसके बावजूद कई मंत्रालयों, विभागों, कार्यालयों में राजभाषा कर्मियों के लिए तदनुसार उचित वेतनमान लागू नहीं किए गए थे । इस संबंध में युग मानस समय-समय पर अपने पाठकों की जानकारी के लिए सामग्री देती रही । अब राजभाषा कर्मियों के लिए एक खुश खबरी है कि वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग के कार्यान्वयन प्रकोष्ठ द्वारा इस संबंध में कार्यालय ज्ञापन जारी किया गया है । श्री आलोक सक्सेना, निदेशक (कार्यान्वय प्रकोष्ठ) के हस्ताक्षर से जारी व्यय विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार का कार्यलय ज्ञापन एफ.नं.1 1 2008 – आई सी, दि. 24 नवंबर, 2008 युग मानस के पाठकों, राजभाषा-कर्मियों की सूचना एवं उपयोगार्थ यहाँ प्रस्तुत है ।




आशा है, अब राजभाषा-कर्मियों को न्यायमूर्ति श्री कृष्ण की अध्यक्षतावाले छठे वेतन आयोग द्वारा संस्तुत वेतनमान मिलने अब अनावश्यक विलंब नहीं होगा ।

श्रद्धांजलि




राजभाषा की सेवा में शहीद हुए राजीव सारस्वत ...



राजीव ओमप्रकाश सारस्वत युग मानस के पाठकों के लिए राजीव सारस्वत के नाम से परिचित हैं । राज हाल ही मुंबई में ताज होटल में आतंकी हमलों के दौरान स्वर्गस्त हुए हैं । यह विडंबनात्मक घटना के दौरान वे राजभाषा सेवा के कार्य में ही लगे हुए थे । संसदीय राजभाषा समिति के दौरे के क्रम में आतंकी हादसे के दिन वे मुंबई के ताज होटल में हिंदुस्तान पेट्रोलियम कार्पोरेशन के नियंत्रण-कक्ष में अपने दायित्व निभा रहे थे । सहृदयी कवि एवं विशिष्ट साहित्यिक कर्मी राजीव सारस्वत का निधन हम सबके लिए अत्यंत दुःखद घटना है । इन दुःखद क्षणों में हम सब उनके शोक-संतप्त परिवार के साथ हैं । राजीव आपके साहित्यिक साधना सारस्वत को हमें सदा याद करेंगे । ईश्वर आपको असीम शांति प्रदान करें । - डॉ. सी. जय शंकर बाबु



स्‍वर्गीय राजीव को श्रद्वांजलि


- डा.एस.बशीर,चेन्नै


राजीव तुम सदा अमर हो
ओम शब्‍द से वर्चस्व सज़ा कर
प्रकाश फैलाया था सभी ओर
सारस्वत कार्यों से उज़ागर
कीर्ती प्रतिष्ठा को गरिमा प्रदान कर
पुण्यात्मा बन क्षितिज़ में विलीन
कोलाहल से दूर होकर
शांति यात्रा पर चल बसे
मिले अगणित धैर्य परिजनों को
आपके उसूल, उन्हें मिसाल बने
जीवन सदा सरताज़ रहें।


सक्रिय साहित्यकार राजीव सारस्वत की एक कविता युग मानस में यहाँ प्रकाशित हुई है और उनके विचार यहाँ प्रकाशित हुए हैं


राजीव सारस्वत जी के प्रति श्रद्धांजलि प्रकट करने के लिए इच्छुक मित्र Comments में अपने विचार शामिल कर सकते हैं । अथवा यहाँ लिख सकते हैं । आपके विचार युग मानस में तत्काल प्रकाशित हो जाएंगे । Friends of Rajeev Saaraswat may express their condolences here or may send by e-mail to yugmanas@gmail.com. Their views will be published in Yug Manas. - सं.

Saturday, November 29, 2008

Live Commentary in Hindi in S.V. Bhakthi Channel by Dr. C. Jaya Sankar Babu


तिरुपति श्रीवेंकटेश्वर भक्ति (टी.वी.) चैनल में डॉ. सी. जय शंकर बाबु का हिंदी में व्याख्यान



तिरुमला-तिरुपति श्री वेंकटेश्वर स्वामी (श्री बालाजी) की सहधर्मिनी श्री पद्मावती देवी का तिरुचानूर (तिरुपति से 5 कि.मी. दूर स्थित) स्थित मंदिर में कार्तीक ब्रह्मोत्सव धूम-धाम से सुसंपन्न हो रहे हैं । देवी पद्मावती मंदिर में संपन्न होने वाले वार्षिक उत्सवों में अत्यंत महत्वपूर्ण उत्सव है, कार्तीक ब्रह्मोत्सव । शास्त्रों के उल्लेख के अनुसार भगवान श्री महाविष्णु की हृदयेश्वरी महालक्ष्मी कवियुग में देवी पद्मावती के रूप में कार्तीक पंचमी, शुक्रवार उत्तराषाड नक्षत्र की शुभवेला तिरुचार स्थित पद्म सरोवर में स्वर्ण कमल से आविर्भूत हुई थी । इसलिए इस क्षेत्र में कार्तीक ब्रह्मोत्सव अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है । नौ दिन के इस उत्सव में लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं । इस वर्ष 24 नवंबर, 2008 से 2 दिसंबर, 2008 तक संपन्न होनेवाले श्री पद्मावती देवी कार्तीक ब्रह्मोत्सव का सीधा प्रसारण श्री वेंकटेश्वर भक्ति चैनल (तिरुमला तरुपति देवस्थानम का अधिकारिक टी.वी. चैनल) में किया जा रहा है । इसमें दक्षिण की भाषाओं के अलावा हिंदी में भी व्याख्यान की व्यवस्था की गई है ।



आज दि.30 नवंबर, 2008 रविवार को सुबह सूर्य वाहन और शाम 8 बजे से चंद्रप्रभा वाहन में श्री पद्मावती देवी की परिक्रमा होगी । कल (1 दिसंबर, 2008 सोमवार) सबसे महत्वपूर्ण उत्सव - रथोत्सव होगा । इन दोनों अवसरों पर श्री वेंकटेश्वर भक्ति चैनल के सीधे प्रसारणों में हिंदी में व्याख्यान देंगे युग मानस के संपादक डॉ. सी. जय शंकर बाबु । इनके साथ सह व्याख्यानदाताओं के रूप में डॉ. पुट्टपर्ति नागपद्मिनी और डॉ. वाई.वी.एन. राव भी शामिल होंगे ।

Friday, November 21, 2008

जीव-हत्या JEEV HATYA

Cattle restrained for stunning just prior to slaughter. Dr Temple Grandin को धन्यवाद सहित ।



जीव-हत्या

- लक्ष्मी ढौंडियाल, नई दिल्ली

बरसों से अरमां सजाए
हाथों में मेहँदी लग जाए
खुश थी कितनी मुद्दत बाद
मिलने वाली थी मन मुराद
आने वाली थी बारात
बस चंद रोज ही शेष बचे थे
मदमस्त गाँव गलियारे जाती
झूम झूम जंगल में गाती
अकस्मात् एक दिन जंगल में
शेर खड़ा था उसके पास
उसने कहा मुझे छोड़ दो
मेरे सभी अरमां हैं बाकि
मुझे मेहँदी लगवानी है
दुल्हन बन पी घर जाना है
शेर में जज्बात कहाँ
दिया झपट्टा मार गिराया
पल में प्राण पखेरू उड़ गए
रह गए सभी अरमां अधूरे
वो तो पशु था
दिल भी पशुवत
हम मनुष्य हैं फिर भी पग पग
पशुता ही दिखलाते हैं
बकरी को चारा दिया
हिष्ट पुष्ट तंदुरुस्त बन जाए
मुर्गी को दाना दिया
अंग अंग कोमल हो जाए
मछली को भोजन दिया
निगलें तो कांटा न आए
सब जीवों को हमने पाला
स्वाद स्वाद में वध कर डाला
बरछी भाला चाकू छुरी से
कितने जीव कर दिए हलाल
तब तो तनिक भी रूह न कांपी
अपने पाँव में शूल चुभे तो
कैसी चीखें चिल्लाते हो
मूक निरीह कमजोर जीव का
मांस चाव से खाते हो
धर्म कर्म उपदेश की बातें
मानव क्यूँ दोहराते हो
सोचो गर तुम्हें कोई मारे
अंग अंग छिन्न भिन्न कर डाले
भुने आग में
तले तेल में
हल्दी मिर्च का लेप लगाए
शरीर तुम्हारा मृतप्राय पर
आत्मा रह रह चिल्लाए
एक माँ की ममता हो तुम
एक पिता का गहन दुलार
पत्नी के माथे की बिंदी
बहन की राखी से बंधा प्यार
भूखे बच्चों की रोटी हो
सबकी आँखों का मोती हो
तुम्हे कोई स्वाद की चाह में मारे
सोचने से भी घबराते हो
वो जीव भी माता पिता हैं
वो भी किसी की आँख के तारे
तो फिर क्यूँ तुम मनुष्य होकर
अधम पशु बन जाते हो
स्वाद स्वाद में
हत्या दर हत्या
कितने पाप कमाते हो ।

***
JEEV HATYA - A POEM IN HINDI BY LAKSHMI DHAUNDIYAL, NEW DELHI
***

HOW IS THIS POEM ? KINDLY POST YOUR VIEWS IN COMMENTS

Tuesday, November 18, 2008

तेलुगु भाषा एवं साहित्य

तेलुगु भाषा एवं साहित्य


अंतरजाल पर तेलुगु भाषा एवं साहित्य पर हिंदी में अपेक्षित मात्रा में सामग्री उपलब्ध न होने के कारण अपने पाठकों के लिए युग मानस की ओर से तेलुगु भाषा एवं साहित्य पर धारावाहिक लेखमाला का प्रकाशन आरंभ किया गया है । तेलुगु के युवा कवि उप्पलधडियम वेंकटेश्वरा अपने लेखों के माध्यम से तेलुगु भाषा एवं साहित्य के विविध आयामों पर प्रकाश डालते हुए धारावाहिक लिख रहे हैं । इस क्रम में 1, 2, 3 के बाद अब चौथा किस्त यहाँ प्रस्तुत है । - सं.

तेलुगु भाषा की प्राचीनता
(गतांक से जारी)

- उप्पलधडियम वेंकटेश्वरा, चेन्नै ।



संस्कृत साहित्य में अनेक ग्रंथों में तेलुगु-प्रजाति और तेलुगु भाषा का उल्लेख मिलता है ।

(i) प्राचीन संस्कृत साहित्य में, दक्षिण भारत की प्रजातियों में से आंध्र-प्रजाति का उल्लेख ही प्राचीनतम है ।


(ii) संस्कृत साहित्य में तेलुगु प्रजाति का सर्वप्रथम उल्लेख ऐतरेय ब्राह्मण (ई.पू.छठी शताब्दी) में मिलता है । महर्षि विश्वामित्र के पुत्र, शुनश्शेप को अपने बड़ा भाई मानने से इनकार कर देते हैं तो कुपित होकर विश्वामित्र उन्हें आंध्र, पुंड्र, शबर इत्यादि दस्युओं में शामिल हो जाने का शाप देते हैं ।

तस्यह विश्वामित्र स्यैकशतम् पुत्रा आसु:
पंचाशत् एक ज्यायांसो मधुच्चंदस:
पंचाशत् कनीयांस: तद्वैज्यायांसो नते कुलम् मेतिरे
तान् अनुयाजहारन् तान् व: प्रजाभिक्षिस्तेति त
एतेन्ध्रा: पुंड्रा शबरा: पुलिंदा मूतिबा इत्युदंत्या

बहवो भवंति वैश्वामित्रा दस्यूनाम् भूयिष्ठा :

(ऐतरेय ब्राह्मण, तृतीय अध्याय, पांचवा खंड)

(iii) वाल्मीकि रामायण में किष्किंधाकांड में आंध्र-प्रांत का उल्लेख है । सुग्रीव सीताजी की खोज में अपनी वानर-सेना को दक्षिण की ओर भेजते हुए उसको निर्देश देते हैं कि आंध्र, पुंड्र इत्यादि प्रांतों में जाकर खोजें ।


. . . .अन्वीक्ष्य दण्डाकारण्यम् सपर्वत नदी गुहम्
नदीम् गोदावरीम् चैव सर्वमेवानु पश्वत
तथैव आंध्रांश्च . . . .


iv) महाभारते के 'आदि पर्व' में बताया गया कि द्रौपदी के स्वयंवर में अंधक भी शामिल हुए ।


हलायुध स्तत्र जनार्दनश्च
वृष्ण्यंधका श्चैव यथा प्रधानम्
प्रेक्षाम् स्मचक्रुर्यदुपुंगवास्ते
स्थिताश्च कृष्णस्य मते महांत:


v) महाभारत के सभापर्व में बताया गया कि युधिष्ठिर की मयसभा में अन्य
राजाओं के साथ आंध्र-नरेश भी शामिल थे ।


तथांग वंगौ सह पुंड्रकेण
पांडयोढ्र राजौच सह आंध्रकेण

(सभापर्व, चतुर्थ अध्याय, श्लोक सं.24)

vi) महाभारत में यह भी बताया गया कि दक्षिण की विजय-यात्रा के दौरान सहदेव ने आंध्र के राजा को पराजित किया ।


. . . . आंध्रांम् स्तालवनांश्चैव कलिंगा नुष्ट्र कर्णिकान्


vii) शांति पर्व में युधिष्ठिर को विभिन्न जातियों का बोध करते हुए भीष्म पितामह कहते हैं कि दक्षिण की प्रजातियों में आंध्रक-प्रजाति भी एक हैं ।

दक्षिणापथ जन्मान: सर्वे नरवरांध्रक :
गुहा: पुलिंदा: शबरश्चुचुका मद्रकैस्सह

viii) भागवत पुराण में इस बात का उल्लेख है कि किरात, हूण, आंध्र, पुलिंद इत्यादि प्रजातियों की जनता ने अपने-अपने पापों से मुक्त होने के लिए भगवान विष्णु की प्रार्थना की ।

किरात हूणांध्र पुलिंद पुल्कसा . . . .
तस्मै प्रभविष्णवे नम :

(श्रीमत् भागवत्, द्वितीय स्कंध, 14 वां अध्याय, श्लोक सं.18)

ix) भागवत पुराण में यह भी बताया गया कि राजा बलि के छ: पुत्रों ने अपने-अपने नाम से साम्रज्य की स्थापना की, जिनमें से 'आंध्र' नामक पुत्र द्वारा आंध्र-साम्राज्य की स्थापना की गई ।

अंग वंग कलिंगांध्र सिंह पुंड्रांध्र संक्षिका:
जिज्ञिरे दीर्घ तपसो बले: क्षेत्रे महीक्षित:
चकु स्स्वनान्नू विषयान् षडिमान् प्राच्चयगांश्चते

(भागवत पुराण, नवम स्कंध, 23 वां अध्याय, श्लोक सं.6)

x) मनुस्मृति में बताया गया कि आंध्र की जनता कारवार स्त्री और वैदेह की संतान है ।

कारावरो निषादात्तु चर्मकार: प्रसूयते
वैदेहिका दंध्र मेदौ बहिर्गामृ प्रतिश्चयौ

(मनुस्मृति, 10 वां अध्याय, श्लोक सं. 30)

xi) सम्राट अशोक के शिलालेखों में आंध्र-जनता की प्रशंसा मिलती है ।

एवमेव इहराज विषयेषु यवन कंभोजेषु
नाभके नाभ पंक्तिषु, भोजपति निवयेषु
अंध्र पुलिन्देषु सर्वत्र देवानां प्रियस्य
धर्मानुशिष्ठि मनुवर्तने ।

xii) इसके अलावा मत्स्य पुराण, वायु पुराण, ब्रहम् पुराण आदि ग्रंथों में जाति वाचक संज्ञा के रूप में अंध्र, आंध्र, अंधक और आंध्रक शब्दों का प्रयोग मिलता है । ये शब्द एक ही प्रजाति को सूचित करते हैं ।

xiii) प्राचीन द्रविड़ भाषाओं में से तेलुगु भाषा ही संस्कृत के साथ अधिक निकटता रखती है । भाषाविद डॉ. जी.वी. पूर्णचंद मानते हैं कि तेलुगु और संस्कृत भाषाओं के बीच के गहरे संबंध हज़ारों वर्ष पूर्व स्थापित हुए थे, जो तेलुगु भाषा की प्राचीनता का प्रमाण है । संस्कृत और तेलुगु भाषाओं की आपसी घनिष्ठता और सादृश्य को डॉ. भोलानाथ तिवारी के इन शब्दों के आलोक में परखना उपयुक्त होगा कि जिस समय संस्कृत का व्यापक प्रयोग हो रहा था, मध्य प्रदेश की संस्कृत की मानक और अनुकरणीय मानी जाती थी (राजभाषा हिंदी , पृ.66), क्योंकि आंध्र-भूमि मध्य प्रदेश के निकट स्थित है ।

इन तमाम आधारों से तेलुगु भाषा की प्राचीनता प्रमाणित है ।

तेलुगु के कई महत्वपूर्ण आयामों में इसी स्तंभ के अंतर्गत प्रकाशित होनेवाले धारावाहित लेखों के माध्यम से आप नियमित रूप से पढ़ सकते हैं ।

राजभाषा कर्मियों को

छठे वेतन आयोग की

सिफारिशों का लाभ... यहाँ पढ़ें

తెలుగు భాష మరియు సాహిత్యము

TELUGU LANGUAGE AND LITERATURE

Monday, November 17, 2008

राजभाषा कर्मियों को छठे वेतन आयोग की सिफारिशों का लाभ...

राजभाषा कर्मियों को छठे वेतन आयोग की सिफारिशों का लाभ...


इसी शीर्षक से युग मानस में की गई प्रविष्टियों पर कई पाठकों की दूरभाष पर प्रतिक्रियाएँ मिली हैं । कुछ खबरें ऐसी भी मिली हैं कि यहाँ प्रकाशित जानकारी एवं व्यय विभाग के आदेश के आधार पर प्रयास करने के पर भी कई जगह उचित कार्रवाई न करके इस संबंध में अलग से व्यय विभाग की ओर से ज्ञापन की माँग कर रहे हैं । यह हिंदी संवर्ग के प्रति उपेक्षा की पराकाष्ठा है । खैर, जब व्यय विभाग ने स्पष्ट कर ही दिया है, माँग करने पर आगे जाकर एक् सार्वजनिक स्पष्टीकरण भी जारी कर सकता है । इस संबंध में हिंदी संवर्ग के प्रति जारी उपेक्षा को समाप्त करने के लिए व्यय विभाग को चाहिए कि वह वेतन आयोग की साइट पर ही स्पष्टीकरण प्रकाशित कर दे ।

Tuesday, November 11, 2008

राजभाषा कर्मियों को छठे वेतन आयोग की सिफारिशों का लाभ

सूचना अधिकार अधिनियम के सही प्रयोग ने किया राजभाषा कर्मियों का उद्धार

राजभाषा कर्मियों को छठे वेतन आयोग की सिफारिशों का लाभ...

- डॉ. सी. जय शंकर बाबु

छठे वेतन आयोग आयोग ने सचिवालयों तथा अधीनस्थ कार्यालयों के हिंदी कर्मियों को समान वेतना की सिफारिश की थी । इसकी जानकारी देते हुए राजभाषा कर्मियों की समग्र स्थिति के संबंध विस्तृत जानकारी युग मानस ने यहाँ दी थी । इसके बाद जब वेतनमान लागू हो ही गए, अधिकांश कार्यालयों में राजभाषा हिंदी कर्मी इससे वंचित रह गए थे । इस पर भी युग मानस ने यहाँ जिक्र किया था ।

आखिर अब राजभाषा कर्मियों की आशा पूरी होने वाली है । अब उन्हें न्यायोचित वेतन देने का मार्ग खुल गया सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 के सही प्रयोग से ।
भारत सरकार, वित्त मंत्रालय, व्यय विभाग के संयुक्त सचिव (कार्मिक) एवं अपील अधिकारी (सूचना अधिकार अधिनियम) मधुलिका पी. सुकुल द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण के अनुसार – “सरकार ने व्यय विभाग संकल्प क्रमांक.1/1/2008-आईसी, दि.29.8.2008 में दिए गए आशोधन के अधीन छठे वेतन आयोग की रिपोर्ट को एक पैकेज के रूप में स्वीकृति दी है । तदनुसार, केंद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा संवर्ग के बाहर विभिन्न अधीनस्थ कार्यालयों में वर्तमान सदृश पदनाम वाले पदों के लिए भी केंद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा संवर्ग के अनुरूप वेतनमान की स्वीकृति दी गई है ।” श्री रवि अग्रवाल बनाम केंद्रीय जन सूचना अधिकारी, व्यय विभाग, वित्त मंत्रालय के मामले (मामला सं.एए/65/2008) में अपील अधिकारी की हैसियत से उन्होंने उक्त सूचना दी है ।

सूचना की छायाप्रति युग मानस के पाठकों की सूचना हेतु यहाँ प्रस्तुत है ।






प्रत्येक लोक प्राधिकारी के कार्यकरण में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के संवर्धन के लिए लोक प्राधिकारियों के नियंत्रणाधीन सूचना तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए नागरिकों के सूचना के अधिकार की व्यावहारिक शासन पद्धति स्थापित करने के लिए भारत सरकार द्वारा अधिनियमित सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत श्री रवि अग्रवाल ने उक्त सूचना प्राप्त की है । युग मानस की तरफ से उन्हें बधाई । लोकतंत्रात्मक गणराज्य भारत में शिक्षित बुद्धिजीवी वर्ग को सरकार द्वारा दिए गए अधिकारों का बेहिचक प्रयोग करना चाहिए । उन्हें स्वयं सचेत रहते हुए निरक्षरों को भी सरकारी अधिनियमों, नियमों की जानकारी देते रहें ताकि सबको न्याय का फल सुलभ हो सके । सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 के संबंध में अधिक जानकारी आप यहाँ से हासिल कर सकते हैं ।

New Pay Scales to Official Language Staff

Thanks to RTI...

Official Language Staff shall now enjoy the scales as recommended by the Sixth Central Pay Commission… thanks to the awareness and right use of the Right to Information Act, 2005.


For further details just click
here.

Sunday, November 9, 2008

कविता



दोस्ती का तराना


- सुश्री डी. अर्चना, चेन्नै ।

दोस्त, दोस्ती, दोस्ताना
गले मिलाकर, खुले दिल से
बुलंदी आवाज़ में गाए
ख़ुशियों का नया तराना
भूल जाएं ग़म पुराना
याद आए सरगम का
नया तराना
मिल के गाएं
साज सिंगार का फ़साना
सबको याद आए जीवन का नया अफ़साना
बीत गया जो कल पुराना
पल पल याद आए
ख़ुशियों का सज़ाना
रहे या न रहे ये ठिकाना
बस चंद अल्फ़ाज का
रहे ज़माना ।
सदियों तक याद रहे यार ये याराना
दिलों में जमा रहे अनमोल ख़जाना
अय! यार यारी ये याराना
बन गया ज़िंदादिली का घराना
कभी अलबिदा हो...दूर वादियों में...
ग़मों से कभी न घबराना
काटों से बेफ़िजूल न आंसू बहाना
अगर ज़रूरत हो तो, हमें भी याद करना
मन के आँगन में खुशी के फूल खिलाना
दिल के द्वारा दीवाली के दीप जलाना
अंधेरों को चीरकर रोशनी फैलाना
वीरानों को दूर कर
सरगम के गीत सजाना
बहे जीवन-मरण के बीच एक मधुर झरना
सभी को इन्सानियत का मूल्‍य बताना
समर्पण व एकता की अर्चना करना
भावात्मक एकता को जगाना
सदा तुम देश प्रेमी बनकर
देश के विकास में हाथ बढ़ाना ।

हम किसी से कम नहीं कहकर
ज़माने को दिखाना
पूरे विश्‍व में भारत का नाम उजा़गर करना
हम रहें या न रहें देश आबाद रखना
अय दोस्त !
ये दोस्ती को यादगार बनाना
दुवा है कि ख़ुदा हमेशा सलामत रखे ।

Tuesday, November 4, 2008

बाल मानस



विजेता


- सादिक, चेन्नै


पप्पा‍ कहते हैं कि -
जो मेहनतकश
समय का पाबंद
अपने कर्तव्य के प्रति सचेत
दैनिक व्यवहार में शालीन
कार्य के प्रति समर्पित
पढ़ाई व खेल-कूद में ‍अव्वल रहेगा
वही इस दुनिया में
‘विजेता’ कहलाएगा

Monday, November 3, 2008

कविता

मैं हिंदी हूँ

- रमेश प्रभु, कोच्चिन ।


मैं हूँ हिंदी
सबकी प्यारी हिंदी
मैं सिर्फ एक भाषा नहीं हूँ
जन– जन की धड़कन हूँ
वीरों की वाणी हूँ
रण भूमि में अमर गीत हूँ
शत्रु की नींद को उड़ाती हूँ ।

मैं हूँ हिंदी
सबकी प्यारी हिंदी
देखो मैं सिर्फ़ एक भाषा नहीं
मेरा नाम केवल हिंदी ही नहीं
मैं इस देश की बिंदी भी हूँ
माँ भारती के ललाट का सिंदूर हूँ ।

मैं हूँ हिंदी
सबकी प्यारी हिंदी
चाहे बोलो हिंदी या बिंदी
बूंद बूंद से बनता है सागर
लेकिन दिल दिल से बनती भाषा
मैं भारत की आत्मा हूँ,
मुझे जन–जन के मन में बसाओ
सबके मन में प्रेरणा जगाओ
प्यार की बोली हूँ मैं
मुझे पहचानो और मानो
मैं तेरी इज्जत हूँ,
इस देश का गौरव हूँ ।

मैं हूँ हिंदी
सबकी प्यारी हिंदी
हे राष्ट्र के सपूत
मुझे राष्ट्रभाषा या राजभाषा के रूप में
भले ही न पहचानो, मगर
दिल की भाषा ज़रूर बनाओ
बनाए रखो मुझे राष्ट्र के ईमान के रूप में
न ताक पे रखो देश के सम्मान को ।

मैं सिर्फ़ नलंदा में ही नहीं
ओक्सफोर्ड तक पहुँच चुकी हूँ
मैं विश्व भाषा बनकर इठलाती नहीं
मैं हूँ हिंदी
सबकी प्यारी हिंदी ।

कविता


हाइकू


- डॉ. एस. बशीर, चेन्नै ।

सब लहरें
समाहित सागर
दिल है वही

झंडे को देख
पक्षी ने मुस्‍कुराया
मैं स्‍वतंत्र हूं।

जलता सूर्य
मुस्‍कुराता बादल
इंद्र धनुष।

भरा तलाब
खिला मधु कमल
भवरों की झुंड।

लघु दीपक
कोसों उजा़ला फैला
मार्ग दर्शाता

काटों के साथ
फूलों का मुस्‍कुराना
जीवन रीत।

किसे सुनाऊं
गमे-दिले-दास्‍तान
सब बहरे।

सफलता ही
आदमी के जीने का
प्रेरणा श्रोत।

झूठी बस्‍ती में
सत्‍य हरिश्‍चन्‍द्र का
जीवन मृत्‍यु ।

कविता



तब घर सोना था अब सूना है


- शर्फराज़ नवाज़, चेन्नै



हमारा घर बड़ा प्‍यारा था
जहां रिश्ते - नाते, प्यार - यार की
लहरों की महक
परिंदों की चहक
दीपों की चमक
साज़ - सिंगार की झलक रंग रंगों की ललक से
सारा आलाम सुशोभित था
सब कुछ था लेकिन आज
मां न होने के कारण
दहकता है...

Wednesday, October 29, 2008

कविता

दीवाली का शुभ संदेश





- सुश्री अर्चना, चेन्नई ।



मेरी प्यारी बहना, न्यारी बहना
तेरी सूरत व सीरत का क्या कहना
तू है हमारे लिए अनमोल गहना
किन अल्फ़ाज– ज़बान से तेरी तारीफ़ करना
किस तूलिका से, तेरी तस्वीर सज़ाना


रे बिना घर आँगन सूना
तू ही थी हमारे मन मंदिर का सपना
तेरी बातों में प्यार ममता का झरना
तेरी सूरत में देवताओं का बसना
दिव्यालोक का प्रतिदिन दर्शन करना

विवाह रचके तू हम से जुदा हुई
दिल से हमेशा याद आती रहीं
तेरे बिना, इस दीवाली की शुभवेला में
दीपों के जलने में
फूलों के खिलने में कोकिल के गानों में
फटाकों के जलाने में

ओ..........आवाज़ नहीं
ओ..........साज़ नहीं
उस राग में, अनुराग नहीं
इस बार दीवाली मनाने में
उतना मज़ा भी नहीं
अब हम बेशुमार प्यार को
गुलदस्तों में सज़ाकर
दिल से..........दीवाली के
शुभ संदेश देते हैं
सौभाग्य की कामना करते हैं।

Muskaan ke liye do kshan..



Smile please...


(Jokes)


- Dr. S. Basheer, Chennai.


In America Marriages by email
In India only with female


***
Husband – I have banglow, car and locker
What you have? Aha…..ha
Wife - I have the keys for all


***


In game of life
Some gets prizes
Others only Surprises


***

Tuesday, October 28, 2008

ग़ज़ल

ग़ज़ल

-कमलप्रीत सिंह

न बात कोई हवा से की


न गुफ़्तगू खिजां से की


सुबहु को हम खामोश थे


शाम ऐ ग़ज़ल जुबां से की


कई और भी हम ख़याल थे


पर बात मेहरबां से की


है मिली हकीकत ऐ ज़िंदगी


शुरुआत दास्ताँ से की


वहां रौशनी की कमीं न थी


पर बात कहकशां से की


ज़िक्र ऐ शिकायत क्या किए


जब बात राजदान से की


न बात कोई हवा से की


न गुफ़्तगू खिजां से की


सुबहु को हम खामोश थे

शाम ऐ ग़ज़ल जुबां से की

कविता

दिव्या माथुर जी की तीन कविताएँ

ज़ुबान

सिर पर चढ़ के
बोलता है झूठ यही सोच के
ख़ामोश हूँ मैं
इसका क़तई ये अर्थ न लो
कि मेरे मुँह में
ज़ुबान नहीं!

बचाव

कचहरी में बड़े बड़े झूठ
एक छोटे से
सच के सामने
सिर झुकाए खड़े थे

बाहर सबसे नज़रें चुराता

सच छिपता छिपाता
अपने बचने का

रस्ता ढूँढ रहा था ।

जंगल

शक और झूठ
बो दिये उसने मेरे मन में
खर पतवार से लगे वे बढ़ने
अब तो बस जंगल ही जंगल है
बाहर जंगलजंगल मन में!

Monday, October 27, 2008

तेलुगु भाषा एवं साहित्य

तेलुगु भाषा एवं साहित्य


अंतरजाल पर तेलुगु भाषा एवं साहित्य पर हिंदी में अपेक्षित मात्रा में सामग्री उपलब्ध न होने के कारण अपने पाठकों के लिए युग मानस की ओर से तेलुगु भाषा एवं साहित्य पर धारावाहिक लेखमाला का प्रकाशन आरंभ किया जा रहा है । तेलुगु के युवा कवि उप्पलधडियम वेंकटेश्वरा अपने लेखों के माध्यम से तेलुगु भाषा एवं साहित्य के विविध आयामों पर प्रकाश डाल रहे हैं । इस क्रम में तीसरा लेख यहाँ प्रस्तुत है । - सं.


तेलुगु भाषा की प्राचीनता


- उप्पलधडियम वेंकटेश्वरा



तेलुगु विश्व की अत्यंत प्राचीन भाषाओं में से एक है। तेलुगु भाषा की प्राचीनता के अनेक प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रमाण मिलते हैं।


आंध्र-प्रांत में प्रचलित एक दंत-कथा के अनुसार तेलुगु भाषा का प्रथम व्याकरण ग्रंथ तेत्रायुग में रावण द्वारा रचा गया। हालांकि यह मात्र दंत-कथा है, फिर भी इससे तेलुगु भाषा की प्राचीनता का आभास मिलता हे।


1. नई खोजों के अनुसार, आंध्र प्रदेश के कर्नूल जिले में स्थित 'ज्वालापुरम्' नामक गाँव को भारत में मानव-जाति का प्रथम आवास-स्थल माना जाता है। वैज्ञानिकों की राय है कि करीब अस्सी हजार वर्ष पूर्व अफ्रीका से एक मानव समूह द्वारा निर्मित एक कुआ प्रकाश में आया है, जो 77,000 वर्ष पुराना है। जाहिर है कि यहां की प्रजा और उनकी भाषा अत्यंत प्राचीन हो।


2. 'गोंड' प्रजाति की उद्भव-गाथा में 'तेलिंग' नामक देव का उल्लेख है। कुछ विद्वान 'तेलिंग' को तेलुगु प्रजाति का मूलपुरुष मानते हैं। तेलुगु प्रजाति की प्राचीनता के आकलन में गोंड प्रजाति की उद्भव-गाथा उपयोगी है।


3. प्रख्यात इतिहासकार डी.डी. कोशांबी ने अपनी पुस्तक ‘Combined methods in Indology and other writings’ (Oxford University Press, 2002, P. 391) में लिखा है कि ”The puranas inform us that Krishna’s father was Vasudeva, mother Devaki, Sister to a tyrant of Madhura named Kamsa. The people were the Andhaka – Vrishni branch of the Yadavs”. इससे स्पष्ट होता है कि श्रीकृष्ण 'अंधक वृष्णी' शाखा के थे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक डॉ. वी.वी. कृष्ण शास्त्री का मानना है कि चूंकि प्राचीन ग्रंथों में 'अंधक' शब्द से आंध्र-प्रजाति अभिप्रेत है । श्रीकृष्ण की प्रतिमा आंध्र-प्रदेश के गुंटूरु जिले के 'कोंडमोटु' गाँव में जो प्राप्त हुई, वह ई.200 की मानी जाती है। यहां इस तथ्य को भी ध्यान में रखना समीचीन होगा कि श्रीकृष्ण से लड़ने वाले चाणूर और मुष्टिक भी आंध्र-प्रजाति के थे, जिसका स्पष्ट उल्लेख महाभारत में किया गया। यह भी तेलुगु प्रजाति की प्राचीनता का द्योतक है।


4. अनेक विद्वानों का मत है कि सुमेरी सभ्यता के साथ तेलुगु प्रजाति का घनिष्ठ संबंध है।


5. इतिहासकार एच.आर. हॉल के अनुसार प्राचीन सुमेरी मानव आकार में दक्कन के मानव-सा था।


6. सुमेरी लोगों ने पूर्वी दिशा में स्थित 'तेलमन' क्षेत्र को अपनी उद्भव-भूमि कहा था। तेलुगु के प्रकांड पंडित डॉ. संगनभट्ल नरसय्या मानते हैं कि यह 'तेलमन' शब्द तेलि (याने सफेद) और मन्नु (मिट्टी), इन तेलुगु शब्दों का स्रोत है। वे यह भी मानते हैं कि उपरोक्त 'तेलमन क्षेत्र' से तेलुगु भाषा-क्षेत्र अभिप्रेत है।


7. सुमेरी सभ्यता के प्रख्यात शहर 'निप्पूर' के नाम में 'निप्पु' (याने आग) और 'ऊरु' (याने स्थल) नामक तेलुगु शब्द पाए जाते हैं।


8. सुमेरी लोगों की प्रधान देवता 'अंकि' थी। आंध्र-प्रांत में व्यक्तिवाचक संज्ञा के रूप में अंकय्य, अंकिनीडु, अंकम्म, अंकालम्म आदि शब्दों का प्रचलित होना तेलुगु और सुमेरी सभ्यताओं के संबंध का द्योतक है।


9. सुमेरी जनता ने आकाश देव को 'अनु' तथा पृथ्वी देव को 'एंकि' की संज्ञा दी थी । आंध्र-प्रांत में अन्नय्या, अन्नमय्या, अन्नम्मा, अन्नंभट्टु आदि नाम पाए जाते हैं, जो संभवत: 'अनु' देव के नाम पर रखे गए हैं। 'एंकि' नाम भी आंध्र-प्रांत में काफी प्रचलित है और कुछ विद्वानों का मत है कि एंकि से वेंकि और वेंकि से वेंकटेश्वर (याने बालाजी) रूप विकसित हुए हैं।


10. सुमेरी जनता ने चांद्रमान को अपनाया और तेलुगु जनता भी चांद्रमान का अनुसरण करती है।


11. प्राचीन सुमेरी भाषा में चांद के लिए 'नन्न' शब्द का प्रयोग मिलता है। तेलुगु के नन्नय्य, नन्नेचोडुडु जैसे प्राचीन कवियों के नाम में भी यह शब्द मिलता है। साथ ही, आंध्र-प्रदेश के तेलंगाणा इलाके के लोग 'नल्लपोचम्मा' नामक देवता की पूजा करते हैं। तेलुगु में यदा-कदा 'न' और 'ल' वर्णों का अभेद होता है। अत: यह शब्द वस्तुत: 'नन्नपोचम्मा' है, जिससे चंद्रकला अभिप्रेत है।


12. सुमेरी सभ्यता के 'निप्पूर' शहर में 'एकूरु' नामक मंदिर था। आंध्र-प्रांत में व्यक्तिवाचक संज्ञ के रूप में 'एकूरय्या' (जिसका अर्थ-बनता है, एकूरु में रहने वाला आदमी) शब्द पाया जाता है। 'निप्पूर' शहर में 'तुम्मल' नामक देवता का मंदिर था, तो आंध्र-प्रदेश में इस नाम से एक गाँव है।


13. सुमेरी सभ्यता के जलप्रलय की गाथा में 'एंकिडु' नामक पात्र आता है। तेलुगु जनता में 'एंकि' शब्द नामवाचक संज्ञा के रूप में काफी प्रचलित है और 'डु' प्रत्यय के साथ दर्जनों नाम मिलते हैं, जैसे रामुडु, कृष्णडु, रंगडु, वेंकडु इत्यादि।


14. प्रख्यात इतिहासकार डी.डी. कोशांबी के अनुसार प्राचीन काल में दक्षिण भारत और सुमेरु के बीच व्यापारिक संबंध थे और दक्षिण भारत से कुछ व्यापारी जाकर सुमेरु में बस गए। सुमेरी सभ्यता के सैकड़ों मिट्टी के फलक (Clay Tablets) प्राप्त हुए हैं और कुछ विद्वानों का मानना है कि इनमें प्राचीन तेलुगु भाषा का प्रयोग हुआ था। डॉ. संगनभट्ल नरसय्य ने नान्नि और इया नाज़िरा नामक दो व्यापारियों के बीच के पत्राचार का उल्लेख किया है। उन्होंने इन पत्रों में से - अनु (याने), चेरि (ठीक), इस्कुंटि (आधुनिक रूप है 'इच्चुकुंटि', जिसका मतलब है मैंने दिया था), 'अय्या' (जी) 'अदि' (वह), 'तूसि इम्मनि माकि' (आधुनिक रूप है 'तूचि इम्मनि माकु', जिसका मतलब है, तोलकर हमें देने के लिए), 'मरि आ वेलकि इम्मनेदि' (तो उस दर पर देने के लिए कहना) आदि तेलुगु शब्दों तथा वाक्यों का उदाहरण देकर सुमेरी भाषा को तेलुगु भाषा का पूर्वरूप् माना है। यहां यह कहना समीचीन होगा कि 'बहराइन थ्रू द एजेस' नामक ग्रंथ में 'अलिक दिलमुन पाठ' का उल्लेख है, जो उपरोक्त कथन को बल देता है। यह भी ध्यान देने का विषय है कि आज भी तेलुगु जनता में नामवाचक संज्ञा के रूप् में 'नानि' शब्द का प्रचलन है।


15. डॉ. संगनभट्ल नरसय्य की धारणा है कि बलूचिस्तान में बोली जाने वाली द्रविड भाषा 'ब्राहुई' अन्य द्रविड भाषाओं की अपेक्षा तेलुगु के निकट है। उनका मानना है कि व्यापार हेतु तिलमुन याने तेलुगु-प्रांत से सुमेरु जाते-जाते बीच में जो व्यापारी रह गए थे, उनकी भाषा 'ब्राहुई' है और इसी कारण तेलुगु एवं ब्राहुई में निकटता पाई जाती है।


16. डॉ. जी.वी. पूर्णचंद ने सुमेरी और तेलुगु भाषाओं के ऐसे शब्दों का विश्लेषण किया, जो समानार्थी और समान रूपी हैं। कुछेक उदाहरण निम्नप्रकार हैं-

सुमेरी शब्द तेलुगु शब्द हिंदी में अर्थ
अबा अवतला के बाद
अका अकटा अय्यो!
अला एल्ल सभी
अर अरक हल
बाद बादु पीटना
बिर विरुचु तोड़ना
बुर पुरुगु कीडा
दिब दिब्ब कूड़ा-ख़ाना
दार दारमु धागा
दिरिग तिरुगु फिरना
फिरिक पिरिकि डरपोक

17. उपरोक्त प्रमाणों से सुमेरी सभ्यता और तेलुगु प्रजाति के बीच का घनिष्ट संबंध स्पष्ट हो जाता है और इससे तेलुगु प्रजाति की प्राचीनता का अनुमान लगाया जा सकता है।

(शेष अगले अंक में)

Saturday, October 25, 2008

दीवाली की शुभकामनाओं सहित...

हाइकु गीत



दीया



- नलिनीकांत, अंडाल ।


अँधेरा हुआ
तो क्या हुआ, जलाओ
आशा का दीया ।

कूबत भर
लड़ेगा तिमिर से
छोटा सा दीया ।

वर्तिका नन्हीं
तेल नहीं पर्याप्त
उसने पीया ।

फिर भी वह
जन्म और जाति से
ज्योति का दीया ।

रग रग में
उसकी प्रकाश औ
दीप्ति है सीया

सूर्यवंशी है
टिमटिमाता लघु
माटी का दीया ।

वह तो झुग्गी
झोपड़ी का जाग्रत
प्रहरी दीया ।

Saturday, October 18, 2008

कविता



बेटियाँ
- डॉ. बशीर, चेन्नै

ये गुल नहीं, गुलज़ार हैं
हर घर में बेटियाँ
ख़ुदा का उपहार हैं
महकती बसंत बहार हैं
परिवार का दुलार हैं
मोहब्बत का इज़हार हैं

ये ममता का पारावार हैं
सेवा का अवतार हैं
सुख-दुःख में भागीदार हैं
बेटियाँ हो तो...
हर घर में, हर दिन त्यौहार है
खेलती-कूदती, मचलती-महकती
ख़ुशबू की बयार हैं

हमारी संपत्ति और प्यार की
हमेशा हकदार हैं
बेटियाँ...
घर घर का सुख-सागर हैं

बेटियाँ कहीं लक्ष्मी बनकर
दौलत लाती हैं
कहीं सरस्वती बनकर
विद्या फैलाती हैं
कहीं मीरा बनकर
विष पाती हैं
कहीं हीरा बनकर
मुकुट धारण करती हैं

बेटियाँ देश की लाज़ हैं
इतिहास का साज़ हैं
गरिमामय वक़्त का राज़ हैं
गौरवशाली देश की आवाज़ हैं ।

कविता

हर बच्‍चा हो मेरे देश का सम्‍मान


- डी. अर्चना, चेन्नै

मेरा भारत महान
जहाँ जन्मे हर बच्चे को
मिले माता-पिता का भरपूर प्यार
मानवाधिकार की छत्र-छाया में आज़ाद ज़िंदगी
जीने का हक बच्चों का जन्‍मसिद्व अधिकार है।

मनोविकास करने
जीवन में प्रगति पाने
आज़ादी से ज़िंदगी बिताने केलिए
हिंदुस्‍तान का बच्‍चा-बच्‍चा हकदार है।

भारत का संविधान
सामाजिक – राजनीतिक - आर्थिक स्थितियाँ
धर्म के रीति रिवाज, जन कल्‍याण संस्‍थाएं
बच्‍चों के जीने के अधिकार को
और भी करें मज़बूत।
कोई भी इसके खिलाफ़
न करे करतूत ।

पूरे विश्‍व में इसका प्रचार हो
बच्‍चों के कल्‍याण में ही
विश्‍व का कल्‍याण निहित है
मानवता का यह संदेश, दस दिशाओं में गूजता रहें।

जब स्‍वास्‍थ पालन-पोषण
नैतिक शिक्षा, सुखद जीवन
रोटी, कपड़ा और मकान
सभी को मिले इसका वरदान।

बच्‍चों की सुरक्षा पर हो अभियान
हम सबको इन सब पर हो अभिमान
कड़ी निगरानी रखें...कानून व संविधान
तब ही होगा इन बच्‍चों का कल्‍याण ।

प्राथमिक शिक्षा हो अनिवार्य
बाल-मज़दूरी का हो निर्मूलन
जो भी इसका करते हैं अवहेलन
दंड नीति का हो पालन हो अनिवार्य
क्‍यों कि आज के बालक ही “भविष्‍य के नागरिक”।

मेरे देश का विकास
इन नन्‍ने-मुन्‍ने बच्‍चों की आंखों में है
इनकी आशाओं से ही
मेरा भारत बने महान
विश्‍व में स्‍थापित हों, नए नए कीर्तिमान।
हर बच्‍चा हो मेरे देश का सम्‍मान
भारत माता की जान-आन और शान ।

कविता

मैं मजदूर


- मनीष जैन

मैं मजदूर, मजदूर ही मुझको रहना है
श्रम से जी दुनिया लाख चुराएं, श्रम मुझको करते रहना है, श्रम ही मेरा गहना है
मैं ही अन्न उपजाता हूँ, सत्ता का भाग्य विधाता हूँ
श्रम नियोजन ही ध्येय मेरा, सुख साधन एक सपना है, श्रम ही मेरा गहना है
वज्र से मेरे ये हाथ बने, श्रम से मेरे कुछ नाथ बने
पर निर्धनता ही मेरी नियति, चुपचाप ही सहते रहना है, श्रम ही मेरा गहना है
मिट्टी से मैं महल बनाऊं, सृजन में जी जान लगाऊं
श्रम ही है मेरा ईश्वर, श्रम की पूजा करना है, श्रम ही मेरा गहना है
सबको सुख साधन उपलब्ध कराऊँ, दरिद्रता में जीता जाऊं
श्रम ही है मेरी पूँजी, श्रम साधन संजोये रखना है, श्रम ही मेरा गहना है
वन और पशु हैं मेरे मीत, सृजन में ही मेरी जीत
मिटाकर तृष्णा और लालसा, संतोषी बनकर रहना है, श्रम ही मेरा गहना है
श्रम से मुझको कष्ट नहीं, कल की मुझको फिक्र नहीं
छोड़ भूत, छोड़ भविष्य, वर्तमान की चिंता करना है, श्रम ही मेरा गहना है
मैं राष्ट्र का कल संवारू, राष्ट्र विकास की राह बुहारु
मरते दम तक श्रम पूर्वक, राष्ट्र की सेवा करना है, श्रम ही मेरा गहना है
वर दो प्रभु! भव भव में मजदूर बनूँ,
करूं सेवा जग भर की, छोड़ विलास श्रम को चुनूँ,
श्रम संग पलना बढ़ना है, श्रम ही मेरा गहना है
मैं मजदूर, मजदूर ही मुझको रहना है ।

कविता

नया व्याकरण


- राजीव सारस्वत, मुंबई


अब चलो नया व्याकरण लिखें हम
विच्छेदों को संधि लिखें हम
मतभेदों को मैत्री लिखें हम
बहुत कर चुके आप टिप्पणी
अपना अंतःकरण लिखें अब
चलो नया व्याकरण लिखें अब..

Friday, October 17, 2008

कविता

बारहवाँ खिलाड़ी

- संजीव जैन, हैदराबाद


खुशनुमा मौसम में
अनगिनत तमाशायी
आते हैं अपने ग्यारह की
टीम का हौसला बढ़ाने को
दिलों जान से चाहते हैं जिसको
उन सब से अलग मैं धतकारा लगाता हूँ
बारहवें खिलाड़ी को
क्या अजब खिलाड़ी है
क्या गजब खिलाड़ी है
दो ओवरो के बीच
जब इसका मौका आता है
हाथ में पानी की बोतल
कंधे पर तौलिया लिये
वो दौड पड़ता है
टीवी का कैमरा तक इससे मुहँ मोड़ लेता है
तेज हुडदंग के बीच औरों से अलग
ये उस लम्हे का इंतजार करता रहता है
जब कोई बलवा हो जाए
काई गर्मी से गश खा जाए
उसे खेलने का बस एक मौका मिल जाए
उसे भी तमाशायियों की तालियाँ मिल जाए
उसका नाम भी कहीं टी वी पर दिख जाए
जब टीम जश्न बनाती है
बारहवाँ खिलाड़ी भी नाचता है, गाता है
मन कौंधता है उसका
तौलिया उठा कर
तू क्यों खुश है इतना
काश
कोई हादसा हो जाए
मुझे अगले मैच में एक मौका मिल जाए
मेरा भी फोटो अखबार में छप जाए
मुझे भी टीम में शामिल कर लिया जाए
मैच दर मैच
बारहवा खिलाड़ी
ऐसा ही खेल दिखाता है
कभी मौका मिले तो कैच लपक जाता है
संजीव तू अपना जश्न
दूसरों के गम से ही क्यों बना

कविता

दर्द

- संजीव जैन, हैदराबाद ।

मेहता जी ने गर्भपात के ​लिए दरवाजा तो खटखटाया
माननीय जजों ने भी अपना फैसला सुनाया।
ले​किन इस बार जल्‍द ​निणर्य तो आया
२० हफ्ते का गर्भ कोर्ट ने बचाया ।

जब बच्‍चा गर्भ से बाहर आएगा
माँ से क्‍या ​अपना दर्द ​​​​​​छिपाएगा ?
जीवन उसको प्‍यारा नज़र आएगा ?
माँ को माफ़ क्‍या कर पाएगा ?
अनचाही औलाद का सपना मन में सजाएगा ?

बीमारी से ज्‍यादा अनचाहे होने का दर्द उसे सताएगा।

Flood Relief work from PURNEA



Dear Sir,
Our flood relief work is going on in Murliganj Block of Madhepuradistrict. Today I have got a digital still camera here. Friday is myoff day so I will go to Purnea and will also visit to Mruliganj Block.Our volunteers are making arrangement for distribution in Murliganjbecause we have lack of materials and the demand is in bulk. Anywaywith the support of some local youth we are managing everything. Wehave distributed 260 kits (5kg Rice, 2kg pulse, 500 gm Biscuits, 1pack candle, two piece match box, 1 kg salt) on 4tha and 5th october2008 very successfully.
Now we are distributing another kit in 500 family. This kit is made of1 torch with battery, 1 blanket, 1 new saree, 1 Aluminium Handi, 1Steel Thali and 1 plastic glass. All these things will be provided byGOONJ.
In coming days, we will distribute 500 piece TENT with the support of GOONJ.
We are also collecting waste cloth for winter. we are trying toprovide needle and thik thread (Sui-dhaga) to women for preparingbed with wastage cloths. You know in coming 15 days, they will shiverfrom cold. So we are trying to save them from this cold with our bestpossible.
We are very grateful to GOONJ founder director Mr. Anshu Gupta and AMPgen. sec. Mr KN Jha. GOONJ is providing us material continuously. SriKN Jha has also given us material watever AMP collected. Ms. PinkyKumari and Mr. Alok Kumar is conduction relief work here verysuccessfully.
I hope we will get some winter cloths especially for baby and baby food also..

With best regards,

Vinay Tarun

Copy Editor, Hindustan Daily, Bhagalpur - 09234702353

Wednesday, October 15, 2008

साक्षात्कार


गृह राज्य मंत्री डॉ. शकील अहमद से श्री प्रकाश जैन का साक्षात्कार



भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा दी गई जिम्मेदारियों को बकूबी निभाते हुए तेज तर्रार व युवा गृह राज्य मंत्री डॉ. शकील अहमद ने आज ऊटी में हो रही तेज बारिश में भी उनके अधीन राजभाषा विभाग द्वारा आयोजित संयुक्त क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन में बकौल मुख्य अतिथि अपनी उपस्थिति दर्ज कराई । अपने ओजस्वी भाषाण से सभागार में उपस्थित सभी प्रतिभागियों का राजभाषा कार्यान्वयन के प्रति मनोबल बढ़ाते हुए सबका दिल जीत लिया । कार्याक्रम के पश्चात मिलाप संवाददाता प्रकाश जैन के साथ हुई एक विशेष भेंट वार्ता के प्रमुख अंश –


देश में राजभाषा कार्यान्वयन की वर्तमान स्थिति से क्या आप संतुष्ट हैं ?


हम जिस दिन संतुष्ट हो जाएंगे उस दिन हमारा विकास कार्य रुक जाएगा । हमें अभी बहुत काम करना है । यह बात सच है कि राजभाषा हिंदी देश को जोड़ने वाली भाषा है । हम सबमें अपनी मातृभाषा के प्रति स्वाभाविक प्रेम है । उसी प्रकार देश की भाषा के प्रति भी हमारी जिम्मेदारी होती है । अच्छी बात तो यह है कि अहिंदी भाषी राज्यों में भी हिंदी कार्य के प्रति लोगों की रूचि बढ़ी है ।


राजभाषा के प्रगामी प्रयोग को प्रोत्साहित करने के लिए जो व्यवस्था चल रही है, वह वर्तमान परिदृश्य में कितनी प्रभावशाली है ?


समय के साथ-साथ परिवर्वतन आवश्यक है । राजभाषा कार्यान्वयन के प्रति निष्ठा से जुड़े लोगों को और ज्यादा प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है । इस पर राजभाषा विभाग बड़ी ही गंभीरता से विचार कर रहा है । साथ ही हिंदी को बढ़ावा देने के लिए सूचना प्रोद्योगिकी के व्यापक एवं सुचारू इस्तेमाल को भी बढ़ावा दिया जा रहा है ।


राजभाषा कार्यान्वयन के प्रति कई उच्च अधिकारियों की उदासीनता को दूर करने के लिए विभाग क्या करता है ?


ऊपर से दबाव डालकर मानसिकता में परिवर्तन नहीं किया जा सकता । प्रेम, प्रोत्साहन व सद्भावना से ही मानसिकता बदली जा सकती है । अगर कोई जिम्मेदार व्यक्ति अपना कार्य ठीक ढंग से नहीं करता है और समीक्षा रिपोर्ट के माध्यम से यह पता लगता है कि जानबूझकर कार्य में उदासीनता बरती गई है तो सरकार अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करेगी ।


राजभाषा विभाग प्रसार-प्रचार के क्षेत्र में पिछड़ा क्यों हैं ? क्यों केवल प्रचार सामग्री के रूप में पोस्टर, बैनर इत्यादि बनाकर आंतरिक वितरण किया जाता है और क्यों उपलब्ध मीडिया संसाधनों का खुलकर इस्तेमाल नहीं किया जाता?


इस वर्ष पहली बार हिंदी दिवस के अवसर पर देश के प्रमुख समाचारपत्रों में विज्ञापन प्रकाशित किए गए हैं । आपका कहना सही है हमें और प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है । आपकी बात पर ध्यान देते हुए मीडिया के माध्यम से राजभाषा कार्यान्वयन के प्रति चेतना जागृत करने का प्रयास अवश्य करेंगे ।


छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को राजभाषा कर्मियों उचित तरीके से लागू न किए जाने पर वेतनामान की विसंगतियों को लेकर देश भर में राजभाषा अधिकारियों में गहरा असंतोष दिखाई दे रहा है, क्या आपने इसके लिए कोई कार्रवाई की?


मुझे इस बात की कोई जानकारी नहीं है । और न ही मुझे इस संबंध में कोई शिकायत या प्रतिवेदन प्राप्त नहीं हुआ । यदि ऐसी कोई बात हमारी जानकारी में आएगी तो उचित कार्रवाई अवश्य की जाएगी ।

संयुक्त क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन का शुभारंभ


हिंदी की स्वीकार्यता बढ़ रही है : डॉ. शकील अहमद


(प्रकाश जैन, हैदराबाद)


भाषा एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा नहीं करती, बल्कि एक दूसरे की पूरक होती है । प्रेम, प्रोत्साहन एवं सद्भावना से राजभाषा हिंदी के प्रगामी प्रयोग को कार्यान्वित करना हमारा कर्तव्य है । धीरे-धीरे देश भर में हिंदी भाषा की स्वीकार्यता बढ़ रही है । राजभाषा विभाग ने तमिलनाडु में सम्मेलन का आयोजन कर हमारे देश की एकता की कड़ी को मज़बूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । उपरोक्त उद्गार गृह राज्य मंत्री डॉ. शकील अहमद ने राजभाषा विभाग के दक्षिण व दक्षिण पश्चिम क्षेत्रीय कार्यन्वयन कार्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयुध निर्माणी, अरुवंकाडु (ऊटी) में आयोजित क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन एवं शील्ड वितरण समारोह में बकौल मुख्य अतिथि व्यक्त की है ।
पहाड़ों की रानी ऊटी में हरी भरी वादियों के बीच स्थित अरुवंकाडु स्थित आयुध निर्माणी के सांस्कृतिक भवन में आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, पांडिच्चेरी व लक्ष्यद्वीप में स्थित सरकारी विभागों, बैंकों व सार्वजनिक उपक्रमों के वरिष्ठ अधिकारियों तथा राजभाषा अधिकारियों ने इस सम्मेलन में अपनी सहभागिता दर्ज कराई ।
राजभाषा के उत्कृष्ट कार्यान्वयन हेतु दिए जानेवाले पुरस्कारों में दक्षिण क्षेत्र के अंतर्गत मुर्गीपालन परियोजन, हैदराबाद, प्रतिभूति मुद्रणालय, हैदराबाद, राष्ट्रीय कैडेट कोर, पावरग्रिड कार्पोरेशन आफ इंडिया, हैदराबाद, भारतीय कपास निगम लिमिटेड, अदिलावाद, भारत संचार निगम लिमिटेड, विजयवाडा, यूनियन बैंक आफ इंडिया, विशाखपट्णम, बैंक आफ इंडिया, हैदराबाद, सिड्बी, हैदराबाद, बैंक नराकास मंगलूर, बैंगलूर व हैदराबाद को शील्ड प्रदान किए गए ।
इस अवसर पर राजभाषा विभाग की संयुक्त सचिव पी.वी. वल्सला जी. कुट्टी ने कहा कि जो कार्यालय एवं संस्थान राजभाषा कार्यान्वयन में अभिरुचि दिखाते हैं उन्हें प्रोत्साहन देने के लिए राजभाषा विभाग शील्ड प्रदान करता है । साथ ही ऐसे सम्मेलन के आयोजन के माध्यम से राजभाषा कार्यान्वयन से जुड़े पूरे परिवार के सभी सदस्यों को एक दूसरे से मिलने का अवसर भी मिलता है । हिंदी प्रदेश के लोग अक्सर यह कहते हैं कि हिंदीतर (अहिंदी) प्रदेशों में हिंदी में कार्य करने में बहुत कठिनाई है लेकिन मैं इसे हिंदी प्रदेश के लोगों द्वारा हिंदी में काम न करने का बहाना मानती हूँ । मैंने दो साल में यह देखा है कि अहिंदी प्रदेश में ही राजभाषा कार्यान्वयन का काम सुचारू रूप से हो रहा है । जिस प्रकार पानी में उतरे बिना तैरना सीख नहीं सकते उसी प्रकार भाषा के प्रयोग किए बगैर उसे नहीं सीख सकते हैं । उन्होंने अपने उद्बोधन में स्पष्ट किया कि एक विदेश भाषा (अंग्रेजी) के जरिए हमारी सभ्यता, संस्कृति व विरासत को बचाना, उसे विकसित करना हम पर भारी पड़ सकता है । श्रीमती वल्सला कुट्टी ने यह भी कहा कि पिछले आठ सम्मेलन में से छः सम्मेलनों में गृह राज्य मंत्री अपनी उपस्थित होकर राजभाषा की गरिमा बढ़ाई है । उन्होंने यह भी कहा कि डॉ. शकील अहमद भी इसी प्रकार राजभाषा कार्यान्वयन में अपनी दिलचस्पी दिखाते रहे हैं ।
इस अवसर पर आयुध निर्माणी के महाप्रबंधक वाई.आर. जयसिम्हा, अपर महाप्रबंधक लियो ए. जेराल्ड, राजभाषा विभाग के निदेशक (कार्यान्वयन) बी. आर. शर्मा, निदेशक (तकनीक) केवल कृष्ण भी उपस्थित थे । उद्घाटन सत्र के दौरान राजभाषा विभाग के तकनीकी प्रकोष्ठ, सी-डैक, अक्षर नवीन, एच.सी.एल, मांटेग कम्यूनिकेशन्स द्वारा हिंदी में कार्य करने हेतु विकसित विभिन्न साफ्टवेयरों की जानकारी दी गई । धन्यवाद ज्ञापन विश्वनाथ झा, उप निदेशक (कार्यान्वयन) द्वारा दिया गया ।

Thursday, October 9, 2008

विजयदशमी की शुभकामनाएँ


विजयदशमी पर्व के शुभ अवसर पर
युग मानस के समस्त पाठकों, लेखकों एवं हितैशियों को
हार्दिक शुभकामनाएँ ।

Wednesday, October 1, 2008

छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के आलोक में ...

राजभाषा-कर्मी त्रिशंकु में...
छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के लाभ पाने से सैकडों राजभाषा कर्मी वंचित
- डॉ. सी. जय शंकर बाबु

“राष्ट्र की पहचान मानी जानी वाली हिंदी, जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकारिक भाषा भी बनाने की कोशिशों भी जारी हैं, ऐसी भाषा को भारत सरकार के कार्यालयों में सरकारी कामकाज में प्रयोग को बढ़ावा देने एवं प्रचार-प्रसार कार्य में पूरी निष्ठा के साथ संलग्न हिंदी कर्मियों को न्याय नहीं मिलना तथा बराबर उपेक्षा के शिकार होना पड़ना निश्चय चिंताजनक है । उपेक्षा, अवहेलना के शिकार इन हिंदी कर्मियों के हित में सोचकर न्यायमूर्ति श्री कृष्ण की अध्यक्षता वाला छठा वेतन आयोग ने इस भांति इस वर्ग का हित करने की कोशिश की है जैसे द्रौपदी के चीर हरण के समय श्रीकृष्ण ने उनकी रक्षा की थी । आयोग ने सचिवालयों तथा अधीनस्थ कार्यालयों के हिंदी कर्मियों को समान वेतना की सिफारिश की है । इससे वेतनमानों में बराबरी की संभावना का रास्ता खुल गया है । पदोन्नतियों के संबंध में या मंत्रालयों, विभागों में अलग हिंदी कैडर के गठन के संबंध में अभी कार्यवाही शेष रह गई है । सरकार की नीतियाँ सदा अपने कर्मचारियों को समानता का अवसर देने की ही रही हैं । हिंदी कर्मियों को पदोन्नतियों के अवसर उपलब्ध कराने के संबंध में प्रधान मंत्री की अध्यक्षता वाली केंद्रीय हिंदी समिति तथा गृह मंत्री की अध्यक्षता वाली संसदीय राजभाषा समिति की सिफारिशों के आधार माननीय राष्ट्रपति महोदय की स्वीकृति के बाद भी इतने समय से कोई उचित कार्रवाही नहीं होना अफ़सोस की की बात है ।

लंबी अवधि से हो रही इस उपेक्षा को समाप्त करने की दिशा में सचिवालय के हिंदी कर्मियों तथा अधीनस्थ कार्यालयों के हिंदी कर्मियों के वेतनमानों में बराबरी की तरफ़दारी करने की सिफारिशों के द्वारा छठे वेतन आयोग ने तो शरुआती पहल की है । इस अनुकूल परिणाम का स्वागत करने के साथ-साथ अब होना यह चाहिए कि इन सिफ़ारिशों को लागू करने का प्रयास करने के साथ-साथ लंबी अवधि की इस समस्या को हल करने के लिए समन्वित उपाय भी ढूंढ़ने की आवश्यकता है । अखिल भारतीय स्तर पर राजभाषा संवर्ग बनाने का प्रयास अवश्य किया जाना चाहिए । इस कार्रवाई को अलग-अलग मंत्रालयों एवं विभागों के भरोसे छोड़ने से यों तो यथास्थिति बनी रहने का अथवा किन्हीं एकाध मंत्रालयों में ही ऐसा कैडर का गठन होकर अन्य मंत्रालयों, विभागों में नहीं होने से पुनः विसंगतियों खतरा उत्पन्न होगा । इस समस्या का समाधान इस संवर्ग के गठन के लिए एक अलग स्वतंत्र मंत्रालय या विभाग के नियंत्रण में समूचे काडर को संरक्षण देना की योजना बनाना समय की मांग है । हिंदी की श्रीवृद्ध हेतु किए जाने वाले प्रयासों के अंतर्गत हिंदी से जुड़े अधिकारियों तथा कर्मचारियों के हितों को भी ध्यान में रखना परम आवश्यक है । आज सूचना-क्रांति की उपस्थिति में कोई भी कार्य असंभव या असाध्य नहीं रह गया है । अतः अखिल भारत स्तर पर हिदी कर्मियों के लिए एक संवर्ग का गठन करके इनकी पदोन्नतियों के समुचित अवसर सुनिश्चित करना तथा राजभाषा कार्यान्वयन कार्य को प्रभावी बनाने हेतु अपेक्षित सुविधाएँ एवं साधन उपलब्ध कराने के प्रयास तुरंत किया जाना भी अपेक्षित है । ऐसे प्रयासों के बाद ही संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकारिक भाषाओं की सूची में हिंदी को प्रतिष्ठित करने के सपने साकार होने के रास्ते साफ नज़र आ पाएंगे ।”

इन पंक्तियों को युग मानस में यहाँ प्रकाशित लेख में आप सब पढ़ चुके हैं । इस बीच छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को सरकार द्वारा स्वीकृत किए जाने के परिणाम स्वरूप केंद्र सरकार के कर्मियों के वेतनमानों में वृद्धि हुई है । मगर हिंदी कर्मियों को तो त्रिशंकु में ही रहना पड़ा है । छठे वेतन आयोग द्वारा संस्तुत वेतनमान अधिकांश विभागों में हिंदी कर्मियों को अभी तक नहीं दिए गए हैं । विगत 21 वर्षों से अन्याय एवं असंतोष के शिकार राजभाषा हिंदी कर्मियों का उद्धार छठे वेतन आयोग ने अपनी सिफारिशों के अंतर्गत किसी रूप में किया था । मगर उन सिफारिशों को लागू करते समय उपेक्षित वर्ग के रूप में पुनः राजभाषा संवर्ग उभर आया है । हिंदी कर्मियों के असंतोष को दूर करने तथा उनके न्यायोचित वेतन से उन्हें और अधिक समय तक वंचित न रखने के लिए तुरंत कदम उठाने की आवश्यकता है । आशा है, शीघ्र ही राजभाषा हिंदी कर्मियों की आवाज सही जगह तक पहुँचकर उन्हें उचित न्याय मिल पाएगा ।

Tuesday, September 30, 2008

Flood Relief in Remote Areas of Bihar


Dear Sir,

GOONJ has provides us food material for 300 familiesa and we are
preparing familywise kits. We will distribute it on 1st OCT 2008. As
you know that our team is working in Murliganj Block (ward No 11 and
12) of Madhedpura district intensively. People of there are surrounded
by flood water still and administration is still not succeeded to make
communication with them. We reached there with boat and made a list of
about 300 most poor family. At first, we are providing food there.
After that, we will try to do other activities there like community
development, awareness, PRA etc.

As you know that GOONJ is giving us material support only and we have
to arrange other expenses ourselves. Our office is 55 KM far from the
affected area and we need some cash money also for transportation,
volunteers and other arrangements.

If anyone interested to help us, Please contact
1) Mr. Alok Kumar
State coordinator
Asha Vikash Pariyojana (AVP)
Cell No - 09234828161

2) Ms Pinky Kumari
Coordinator, Purnea (AVP)
Cell No - 09852275160

Sir, tomorrow I am going to Murliganj and return on 1st or 2nd october
2008. I will returned with some rare photographs also because we have
arranged a camera today.

With best regards,

Vinay Tarun
Journalist
Mob: 09234702353
E-mail: tarunvinay@gmail.com


Note- We are working with the NGO Asha Vikash Pariyojana (AVP). Anyone
can send cash support directly into its flood relief account.
CASH DONATIONS/SUPPORT - For Communication, Collection camps, storage,
sorting, packing, travel, Transportation and local distribution
expenses. Cash donations can be made directly into our Flood Relief
Account or you can send an account payee Cheque / Draft in favour of
ASHA VIKAS PARIYOJANA FLOOD RELIEF FUND payable at State Bank of India
Nathnagar, Bhagalpur branch. SBI Core Banking Account No -30475764609.
(All donations are tax exempted u/s- 80 G of IT act.)
Please send a letter about cash donations/supports.

Saturday, September 27, 2008

कविता

स्वर्ण ज्योति जी की मातृभाषा कन्नड है । वे पांडिचेरी में रहती हैं जहाँ की स्थानीय भाषा तमिल है, परंतु वे हिंदी से जुड़ी हैं । इनका एक काव्य संग्रह अच्छा लगता है का प्रकाशन हो चुका है । कन्नड से जैन ग्रंथ का हिंदी में अनुवाद भी प्रकाशित हो चुका है । एक तमिल काव्य संग्रह का अनुवाद कर चुकी हैं । शीघ्र ही मौलिक कहानी संग्रह प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हैं । युग मानस में पहली बार उनकी एक मौलिक कविता प्रकाशित हो रही है ।


नया युग


- स्वर्ण ज्योति



हर एक दिन
सुंदर कल के इंतजार में
खुद को खोते गए
अब तो ढूँढ़ना भी
बेमानी हो गया है
बुलंद इमारतों के साए में
आदमी बौना हो गया है
पाई-पाई जोड़ते जोड़ते
वह खिलौना हो गया है
सपनों के लिए
रातें औ नींद की है जरूरत
पालियों के जाल में फँसकर
सपना देखना भी
सपना हो गया है
बढ़ती गई ऐसी आबादी
जैसे चढ़ती बाढ़ में नदी
हो गई इतनी आपूर्ति
कि ज़िंदगी ही हो गई
बिलकुल सस्ती
दंगा-फसाद, बम-ब्लास्ट
दो दिनों का है मातम
हो जाता है फिर
दिमाग से सब कुछ लॉस्ट
क्योंकि
आदमी खुद को ढूँढ़ने में
नाकाम हो गया है
आधुनीकरण औ मशीनीकरण
की दौड़ में
वह भी केवल
एक पुर्जा बन गया है ।
--

Friday, September 26, 2008

कविता

महंगाई

- देवेंद्र कुमार मिश्रा

कभी नहीं था सोचा मैंने, ऐसा भी हो सकता है ।
बिन ईंधन के चलना मुश्किल, सब की हालत खसता है ।।
सब की हालत खसता है, ईंधन हुआ महंगा नशा ।
अमेरिका-ईरान संबंधों से, हुई यह दुर्दशा ।।
कच्चे तेल की बढ़ती कीमत, परेशान हैं आज सभी ।
दादा गिरी, आपना असत्तव, असर दिखाए कभी-कभी ।।

बिगड़ा पर्यावरण, कहीं है बाढ़-कहीं है सूखा ।
कृषि उत्पादन कमी आई है, आज किसान है भूखा ।।
आज किसान है भूखा, लागत ज्यादा उत्पादन कम ।
कर्जा चुका नहीं है पाता, तोड़ रहा है दम ।।
सुरसा जैसा मुँह फैलाए, महंगाई ने झिगड़ा ।
विदेशी आनाज मंगाया, देशी बजट है बिगड़ा ।।

मकान, सोना चाँदी, हुई आज है सपना ।
बेरोजगारी बढ़ती जाती, रंग दिखाती अपना ।।
रंग दिखाती अपना, आज है मुश्किल शिक्षा पाना ।
भ्रष्टाचार का जाल है फैला, योग्य-अयोग्य न जाना ।।
शादी के संजोए सपने, महंगाई फीके पकवान ।
कर्मचारी, मजदूर, किसान, बचा सके न आज मकान ।।
नेता की परिभाषा बदली, पाखंडी बनाया बेश ।

कभी भूनते तंदूरों में, बाहुबली चलाते देश ।।
बाहुबली चलाते देश, धर्म-जाति आपस लड़बाते ।
सत्ता में आ जाते , वेतन सुख-सुविधाएं पाते ।।
सब कुछ मंहगा मौत है सस्ती, लाज के ये क्रेता ।
कुछ नहीं सिद्धांत इनका, भ्रष्ट आचरण नेता ।।

दर-दर बढ़ती जनसंख्या, भूमि है स्थाई ।
कृषि भूमि में बनी हैं बस्ती, ऐसी नौबत आई ।।
ऐसी नौबत आई, जनसंख्या पर रोक लगाओ ।
नूतन तकनीती से, आवश्यकता पूर्ण कराओ ।।
विज्ञानकों का कर आह्वान, अविष्कार को कर ।
पर्यावरण का कर संरक्षण, रोको महंगाई की दर ।।

कविता





झील आपकी नाव मेरी

-सुधीर सक्सेना ‘सुधि‍’

यह झील सारी आपकी ही है,
लेकि‍न जो नाव इसमें चलती है
वह मेरी है ।
सूरज के ढ़लने के बाद,
सांझ के उड़ते रंगों का जमघट
तट पर बंधी मेरी नाव के समीप होगा,
ठि‍ठक कर रुकी
आपकी झील का पानी
मेरी नाव के आकर्षण से
चला आएगा,
लहरों पर सवार होकर
तब घर लौटने की जल्‍दी होगी
और होगी हलचल
ठीक वैसी ही जैसे कि‍ आप
अपनी झील के शांत जल में
कंकर फेंक कर
हलचल पैदा करते हैं
और खुश होते हैं
‍क्योंकि‍ झील आपकी है
झील का पानी आपका है
लेकि‍न याद रखि‍ए जो नाव
इसमें चलती है वह मेरी है ।

Tuesday, September 9, 2008

युग मानस द्वारा परिचर्चा



युग मानस



युग मानस विगत 14 वर्षों से हिंदी के प्रचार-प्रसार एवं संवर्धन के क्षेत्र में अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहा है । युग मानस के संस्थापक इस क्षेत्र में विगत 22 वर्षों से सक्रिय हैं । बहुभाषाई राष्ट्र भारत में एक संपर्क भाषा के महत्व के आलोक में हिंदी की श्रीवृद्धि हेतु पूरी निष्ठा से संलग्न युग मानस की ओर से हिंदी भाषाई चेतना बढ़ाने एवं हिंदी का अधिकाधिक प्रचार-प्रसार एवं विकास की दिशा में गिलहरी सेवा के रूप में सदा कई प्रयास किए जा रहे हैं ।

राजभाषा हिंदी षष्ठिपूर्ति वर्ष


इसी क्रम में हिंदी की चेतना बढ़ाने तथा हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने हेतु युग मानस ने वर्ष 2008 – 09 को राजभाषा के रूप में हिंदी की षष्ठिपूर्ति वर्ष के रूप में मनाने का संकल्प किया है । इस संबंध में विस्तृत कार्यक्रम की घोषणा शीघ्र ही की जाएगी ।



Ø परिचर्चा से इस आयोजन का श्रीगणेश किया जा रहा है ।


Ø चर्चा का मूल विषय - हिंदी के विकास के लिए हमें क्या करना है ?


Ø परिचर्चा के मुख्य विषयों की घोषणा दि.14 सितंबर, 2008 को किया जाएगा ।


Ø परिचर्चा हेतु प्राप्त विचारों को दि.14 सितंबर, 2008 से विश्वहिंदी में स्थान दिया जाएगा ।


Ø यह परिचर्चा 14 सितंबर, 2008 से 14 सितंबर, 2009 तक जारी रहेगी ।


Ø कृपया परिचर्चा में आप स्वयं भाग लें तथा अपने सभी मित्रों को भी शामिल कीजिए ।


Ø यह भी निवेदन है कि आप जो भी विचार व्यक्त करेंगे, उन्हें स्वयं अपने स्तर पर आत्मसात करते हुए हिंदी की श्रीवृद्घि में योगदान सुनिश्चित करने की कृपा कीजिए ।


Ø इस परिचर्चा हेतु आप अपने विचार yugmanas@gmail.com पते पर ई-मेल द्वारा भेज सकते हैं । आप अपना फोटो भी भेज सकते हैं । पता एवं दूरभाष संख्या भी अवश्य सूचित कीजिए ।


Ø आज ही आप अपने विचार भेजना शुरू कर सकते हैं ।

ग़ज़ल

जुदाई

- श्यामल सुमन

गीत जिनके प्यार का भर जिंदगी गाता रहा ।
बेरूखी से कह दिया अब न कोई नाता रहा ।।

हर जुदाई और मिलन में नम थीं आँखें आपकी ।
क्या खता ऐसी हुई यह सोच घबराता रहा ।।

जो थी चाहत आपकी मेरी इबादत बन गयी ।
हर इशारा आपका मुझको सदा भाता रहा ।।

भूल खुद की भूल से गर आइने में देखते ।
पल न ये आता कभी मैं खुद को समझाता रहा ।।

आपको अमृत मिले पीया जहर हूँ इसलिए ।
कितने अवसर अबतलक आता रहा जाता रहा ।।

जो न सोचा हो गया कैसे हुआ ये क्या पता ।
बात ऊँची की थी हमने इस पे शरमाता रहा ।।

लुट गयी खुशबू सुमन की जब जुदाई सामने ।
बात खुशियों की करें क्या गम पे गम खाता रहा ।।
000

कविता

मेरे सपने


- पंकज उपाध्याय

हाथों में रेत के कुछ चिपके कण
ये याद दिला रहे कि कुछ वक्त पहले
हाथों में घर बुनने के सपने थे ।
आँसुओं के बूंदों से चिपकी रेत
कुछ याद दिला देती है, कि कही
विकास की इक आंधी चली है
और मुझ आम इंसान के हाथ से रेत उड़ जाती है ।
उड़ जाते हैं मेरे सपने, मेरे जज्बा़त
अब मेरी बेबस गरीबी को कोई आकार नहीं मिलेगा
मेरे सर पर घर का भार नहीं रहेगा
मेरे अरमानों और एहसास़ की रेत अब
चिपकी है लक्ज़री़ कार के टायर से
ऐसे ही मेरे अरमान आँखों में पलते रहे
और विकास के बादलों संग उड़ गए
न मिल सकी मुझे खुद की जिंदगी
वक्त उधार की मौत में लिपटा रहा
कोई सूचकांको से कर रहा मेरे दिल की धड़कनों का फैसला,
मेरे सांसो के सिसक अब उन पर है टिकी
अब वही करते है मेरे दिन-रात का फैसला
खुद को सेक्टरों में और हमें कैंपों में बांट कर
वही मुझे सपने दिखाते और तोड़ते हैं ।

कविता

मेरे सपने


- पंकज उपाध्याय

हाथों में रेत के कुछ चिपके कण
ये याद दिला रहे कि कुछ वक्त पहले
हाथों में घर बुनने के सपने थे ।
आँसुओं के बूंदों से चिपकी रेत
कुछ याद दिला देती है, कि कही
विकास की इक आंधी चली है
और मुझ आम इंसान के हाथ से रेत उड़ जाती है ।
उड़ जाते हैं मेरे सपने, मेरे जज्बा़त
अब मेरी बेबस गरीबी को कोई आकार नहीं मिलेगा
मेरे सर पर घर का भार नहीं रहेगा
मेरे अरमानों और एहसास़ की रेत अब
चिपकी है लक्ज़री़ कार के टायर से
ऐसे ही मेरे अरमान आँखों में पलते रहे
और विकास के बादलों संग उड़ गए
न मिल सकी मुझे खुद की जिंदगी
वक्त उधार की मौत में लिपटा रहा
कोई सूचकांको से कर रहा मेरे दिल की धड़कनों का फैसला,
मेरे सांसो के सिसक अब उन पर है टिकी
अब वही करते है मेरे दिन-रात का फैसला
खुद को सेक्टरों में और हमें कैंपों में बांट कर
वही मुझे सपने दिखाते और तोड़ते हैं ।

कविता

बहुत पहले से


- विपिन चौधरी

पक्षियों ने उड़ान भरनी नहीं सीखी थी
मनुष्यों की पलकें आज सी
भारी नहीं थी ।
शोर अपने पाँवों तले
कुचलने की ताकत नहीं रखता था
तब से ही शायद या
उससे भी पहले
ठीक-ठाक नहीं मालूम
इतिहास का लंबा सूत्र थामें
और वर्तमान की राह पर खड़ी यह सब कह रही हूँ
तय था
जब से ही
पत्तों का झरना,
प्रेम का यूँ बरबाद होना,
हसरतों का यूँ जमा होना ।

कविता

मुझे पता है तू जलता है

- अजय मलिक

मुझे पता है
तू जलता है
जहाँ -जहाँ जलता जाता जग ।

मुझे पता है उस डिबरी का
जिसकी लौ में तू जलता है ।
जरा बता तो
क्यों जलता है ?

जग के जलने से जलता है
या जलते जग से जलता है
किस किस के जल से जलता है
किस किस के बल से जलता है
क्यों जलता है ?

जाल जलन का ब्रह्म स्वरूप जब
ज्वाला ने ही धरे रूप सब
बिना आग के क्या है बोलो !!
दिल की हर धड़कन चिंगारी
आंसू की हर बूँद अंगारी

शब्द ब्रह्म भड़काते शोले
फ़िर क्यूं जलता है तू भोले ?

मुझे पता है
तू जलता है ...
---

Monday, September 8, 2008

समीक्षा


काव्य संग्रह-''अभिलाषा''

व्यक्तिगत संबंधों की कविता में सामाजिक सहानुभूति का मानस-संस्पर्श

- डॉ. राम स्वरूप त्रिपाठी. पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष, डी.ए.वी. कालेज, कानपुर ।

मनुष्य को अपने व्यक्तिगत संबंधों के साथ ही जीवन के विविध क्षेत्रों से प्राप्त हो रही अनुभूतियों का आत्मीकरण तथा उनका उपयुक्त शब्दों में भाव तथा चिंतन के स्तर पर अभिव्यक्तीकरण ही वर्तमान कविता का आधार है । जगत के नाना रूपों और व्यापारों में जब मनीषी को नैसर्गिक सौंदर्य के दर्शन होते हैं तथा जब मनोकांक्षाओं के साथ रागात्मक संबंध स्थापित करने में एकात्मकता का अनुभव होता है, तभी यह सामंजस्य सजीवता के साथ समकालीन सृजन का साक्षी बन पाता है । युवा कवि एवं भारतीय डाक सेवा के अधिकारी कृष्ण कुमार यादव ने अपने प्रथम काव्य संग्रह 'अभिलाषा' में अपने बहुरूपात्मक सृजन में प्रकृति के अपार क्षेत्रों में विस्तारित आलंबनों को विषयवस्तु के रूप में प्राप्त करके ह्नदय और मस्तिष्क की रसात्मकता से कविता के अनेक रूप बिंबो में संजोने का प्रयत्न किया है । 'अभिलाषा' का संज्ञक संकलन संस्कारवान कवि का इन्हीं विशेषताओं से युक्त कवि कर्म है, जिसमें व्यक्तिगत संबंधों, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक समस्याओं और विषमताओं तथा जीवन मूल्यों के साथ हो रहे पीढ़ियों के अतीत और वर्तमान के टकरावों और प्रकृति के साथ पर्यावरणीय विक्षोभों का खुलकर भावात्मक अर्थ शब्दों में अनुगुंजित हुआ है । परा और अपरा जीवन दर्शन, विश्व बोध तथा विद्वान बोध से उपजी अनुभूतियों ने भी कवि को अनेक रूपों में उद्वेलित किया है । इन उद्वेलनों में जीवन सौंदर्य के सार्थक और सजीव चित्र शब्दों में अर्थ पा सके हैं ।

संकलन की पहली कविता है- “माँ” के ममत्व भरे भाव की नितांत स्नेहिल अभिव्यक्ति । जिसमें ममता की अनुभूति का पवित्र भाव-वात्सल्य, प्यार और दुलार के विविध रूपों में कथन की मर्मस्पर्शी भंगिमा के साथ कथ्य को सीधे-सीधे पाठक तक संप्रेषित करने का प्रयत्न बनाया है । शब्द जो अभिधात्मक शैली में कुछ कह रहे हैं वह बहुत स्पष्ट अर्थान्विति के परिचायक हैं, परंतु भावात्मकता का केंद्र बिंजु व्यंजना की अंतश्चेतना संभूत व आत्मीयता का मानवी मनोविज्ञान बनकर उभरा है । गोद में बच्चे को लेकर शुभ की आकांक्षी माँ बुरी नजर से बचाने के लिए काजल का टीका लगाती है, बाँह में ताबीज बाँधती है, स्कूल जा रहे बच्चे की भूख-प्यास स्वयं में अनुभव करती है, पड़ोसी बच्चों से लड़कर आये बच्चे को ऑंचल में छिपाती है, दूल्हा बने बच्चे को भाव में देखती है, कल्पना के संसार में शहनाईयों की गूँज सुनती है, बहू को सौंपती हुई माँ भावुक हो उठती है । नाजों से पाले अपने लाड़ले को जीवन धन सौंपती हुई माँ के अश्रु, करूणा विगलित स्नेह और अनुराग के मोती बनकर लुढ़क पड़ते हैं । कवि का ‘माँ’ के प्रति भाव अभ्यर्थना और अभ्यर्चना बनकर कविता का शाश्वत शब्द सौंदर्य बन जाता है ।

कृष्ण कुमार यादव का संवेदनशील मन अनुमान और प्रत्यक्ष की जीवन स्मृतियों का जागृत भाव लोक है, जहाँ माँ अनेक रूपों में प्रकट होती है । कभी पत्र में उत्कीर्ण होकर, तो कभी यादों के झरोखों से झांकती हुई बचपन से आज तक की उपलब्धियों के बीच एक सफल पुत्र को आशीर्वाद देती हुई । किसी निराश्रिता, अभाव ग्रस्त, क्षुधित माँ और सन्तति की काया को भी कवि की लेखनी का स्पर्श मिला है, जहाँ मजबूरी में छिपी निरीहता को भूखी कामुक निगाहों के स्वार्थी संसार के बीच अर्धअनावृत ऑंचल से दूध पिलाती मानवी को अमानवीय नजरों का सामना करना पड़ रहा है । माँ के विविध रूपों को भावों के अनेक स्तरों पर अंकित होते देखना और कविता को शब्द देना आदर्श और यथार्थ की अनुभूतियों का दिल में उतरने वाला शब्द बोध है ।

नारी का प्रेयसी रूप सुकोमल अनुभूतियों से होकर जब भाव भरे ह्नदय के नेह-नीर में रूपायित होता है तब स्पर्श का सुमधुर कंकड़ किस प्रकार तरंगायित कर देता है, ज्योत्सना स्नान प्रेम की सुविस्तारित रति-रजनी के आगोश में बैठे खामोश अंर्तमिलन के क्षणों को इन पंक्तियों में देखें-रात का पहर/जब मैं झील किनारे/ बैठा होता हूँ/चाँद झील में उतर कर/नहा रहा होता है/कुछ देर बाद/चाँद के साथ/एक और चेहरा/मिल जाता है/वह शायद तुम्हारा है/पता नहीं क्यों/ बार-बार होता है ऐसा/मैं नहीं समझ पाता/सामने तुम नहा रही हो या चाँद/आखिरकार झील में/एक कंकड़ फेंककर/खामोशी से मैं/ वहाँ से चला आता हूँ ।

तलाश, तुम्हें जीता हूँ, तुम्हारी खामोशी, बेवफा, प्रेयसी, तितलियाँ, प्रेम, कुँवारी किरणें, शीर्षक कविताएँ जिन वैयक्तिक भावनाओं की मांसल अभिव्यक्तियों को अंगडाइयों में उमंग से भरकर दिल के झरोखों से झाँकती संयोग और वियोग की रसात्मकता का इजहार करती हैं, वह गहरी सांसों के बीच उठती गिरती जन्म-जन्म से प्यासी प्रीति पयस्विनी के तट पर बैठे युगल की ह्नदयस्पंदों में सुनी जाने वाली शरीर की खुशबू और छुअन का स्मृति-स्फीत संसार है । इनमें आंगिक चेष्टाओं और ऐंद्रिक आस्वादनों की सौंदर्यमयी कल्पना का कलात्मक प्रणयन ह्नदयवान रसज्ञों के लिए रसायन बन सकता है । ‘प्रेयसी’ उपखंड की इन कविताओं में सुकोमल वृत्तियों की ये पंक्तियाँ दृष्टव्य हो सकती हैं- सूरज के किरणों की/पहली छुअन/ थोड़ी अल्हड़-सी/ शर्मायी हुई, सकुचाई हुई/ कमरे में कदम रखती है/वही किरण अपने तेज व अनुराग से/वज्र पत्थर को भी/पिघला जाती है/शाम होते ही ढलने लगती हैं किरणें/जैसे कि अपना सारा निचोड़/ उन्होंने धरती को दे दिया हो/ठीक ऐसे ही तुम हो ।

जीवन प्रभात से प्रारंभ होकर विकास, वयस्कता, प्रौढ़ता और वार्धक्य की अवस्थाओं को लांघती कविता की गंभीर ध्वनि मादकता के उन्माद को जीवन सत्य का दर्शन कराने में सक्षम भी हो जाती है । नारी के स्त्रीत्व को मातृत्व और प्रेयसी रूपों से आगे बढ़ाता हुआ कवि, शोषण, उत्पीड़न, अनाचार, अन्याय के पर्याय बन चुके संदेश से दलित व अबला जीवन से भी साक्षात्कार कराता है, जहाँ महीयसी की महिमा, खंड-खंड हो रही भोग्या बनकर देह बन जाती है । स्त्री विमर्श की इन कविताओं में सामाजिक और वैयक्तिक विचारणा की अनेक संभावनाओं से साक्षात्कार करता कवि भाव और विचार में पूज्या पर हो रहे अनन्त अत्याचारों का पर्दाफाश करता है । बहू को जलाना, हवस का शिकार होना तथा “वो” बन कर सड़क के किनारे अधनंगी, पागल और बेचारी बनी बेचारगी क्या कुछ नहीं कह जाती, जो इन कविताओं में बेटी और बहू के रूप में कर्तव्यों की गठरी लादे जीवन की डगर पर अर्थहीन कदमों से जीने को विवश हो जाती है। स्त्री विमर्श का यथार्थ, दलित चेतना की सोच इन कविताओं में वर्तमान का सत्य बन कर उभरी हैं ।

ईश्वर की कल्पना मनुष्य को जब मिली होगी, उसे आशा का आस्थावन विश्वास भी मिला होगा । कृष्ण कुमार यादव ने भी ईश्वर के भाव रूप को सर्वात्मा का विकास माना है । उनका मानना है कि धर्म-सम्प्रदाय के नाम पर घरौदों का निर्माण न तो उस अनन्त की आराधना है, और न ही इनमें उसका निवास है । कवि ने ईश्वर के लिए लिखा है-मैं किसी मंदिर-मस्जिद गुरूद्वारे में नहीं/मैं किसी कर्मकाण्ड और चढ़ावे का भूखा नहीं/नहीं चाहिए मुझे तुम्हारा ये सब कुछ/मैं सत्य में हूँ, सौन्दर्य में हँ, कर्तव्य में हँ /परोपकार में हूँ, अहिंसा में हूँ, हर जीव में हूँ/अपने अन्दर झांको, मैं तुममें भी हूँ/फिर क्यों लड़ते हो तुम/बाहर कहीं ढँढते हुए मुझे । कवि ईश्वर की खोज करता है अनेक प्रतीकों में, अनेक आस्थाओं में और अपने अंदर भी। वह भिखमंगों के ईश्वर को भी देखता है और भक्तों को भिखमंगा होते भी देखता है, बच्चों के भगवान से मिलता है और स्वर्ग-नरक की कल्पनाओं से डरते-डराते मन के अंधेरों में भटकते इन्सानों की भावनाओं में भी खोजता है ।

बालश्रम, बालशोषण और बाल मनोविज्ञान को “अभिलाषा” की कविताओं में जिन शीर्षकों में अभिव्यक्त किया गया है, उनमें प्रमुख हैं-अखबार की कतरनें, जामुन का पेड़, बच्चे की निगाह, वो अपने, आत्मा, बच्चा और मनुष्य तथा बचपन । इन रचनाओं में बाल मन की जिज्ञासा, आक्रोश, आतंक, मासूमियत, प्रकृति, पर्यावरण आदि का मनुष्य के साथ, पेड़-पौधों के साथ व जीव-जन्तुओं के साथ निकट संबंध आत्मीयता की कल्पना को साकार करते हुए, अतीत और वर्तमान की स्थितियों से तुलना करते हुए, आगे आने वाले कल की तस्वीर के साथ व्यक्त किया गया है । बहुधा जीवन और कर्तव्य बोध से अनुप्राणित इस खंड की कविताओं में कवि ने बच्चे की निगाह में बूढ़े चाचा को भीख का कटोरा लिए हुए भी दिखाया है और हुड़दंग मचाते जामुन के पेड़ तथा मिट्टी की सोधी गंध में मौज-मस्ती करते भी स्मृति के कोटरों में छिपी अतीत की तस्वीर से निकालकर प्रस्तुत करते पाया है । बच्चों के निश्छल मन पर छल की छाया का स्वार्थी प्रपंच किस प्रकार हावी होता है और झूठे प्रलोभन व अहंकार के वशीभूत हुए लोग उन्हें भय का भूत दिखाते हैं और जीवन भर के लिये कुरीतियों का गुलाम बना देते हैं, यह भी इन कविताओं में दृष्टव्य हुआ है ।

मन के एकांत में जीवन की गहन चेतना के गंभर स्वर समाहित होते हैं । जब मनुष्य आत्मदर्शी होकर प्रकृति से तादात्म्य स्थापित करता है, तब संसार के हलचल भरे माहौल से अलग, उसे मखमली घास और पेड़ों के हरित संसार में रची-बसी अलौकिक सुंदरता का दर्शन होता है और चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई देती है । वह मन की खिड़की खोल कर देखता है तभी उसे अपने अस्तित्व के दर्शन होते हैं । अकेलेपन का अहसास कराती नीरवता, मानव जीवन की हकीकत, बचपन से जवानी और बुढ़ापे तक का सफर अनेक आशाओं और निराशाओं का अंधेरा और उजाला नजर आने लगता है अकेलेपन में । इस प्रकार की कविताएं भी इस संकलन की विशेषता हैं ।

वर्तमान समय की ग्राम्य और नगर जीवन स्थितियों में पनप रही आपा-धापी का टिक-टिक-टिक शीर्षक से कार्यालयी दिनचर्या, अधिकारी और कर्मचारी की जीवन दशाएँ, फाइलें, सुविधा शुल्क तथा फर्ज अदायगी शीर्षकों में निजी अनुभव और दैनिक क्रियाकलापों का स्वानुभूत प्रस्तुत किया गया है । प्रकृति के साथ भी कवि का साक्षात्कार हुआ है-पचमढ़ी, बादल, नया जीवन तथा प्रकृति के नियम शीर्षकों में । इनमें मनुष्य के भाव लोक को आनुभूतिक उ्द्दीपन प्रदान करती प्रकृति और पर्यावरण की सुखद स्मृतियों को प्रकृतस्थ होकर जीवन के साथ-साथ जिया गया है ।

नैतिकता और जीवन मूल्य कवि के संस्कारों में रचे बसे लगते हैं । उसे अंगुलिमाल के रूप में अत्याचारी व अनाचारी का दुश्चरित्र-चित्र भी याद आता और बुध्द तथा गाँधी का जगत में आदर्श निष्पादन तथा क्षमा, दया, सहानुभूति का मानव धर्म को अनुप्राणित करता चारित्रिक आदर्श भी नहीं भूलता । वर्तमान समय में मनुष्य की सद्वृत्तियों को छल, दंभ, द्वेष, पाखण्ड और झूठ ने कितना ढक लिया है, यह किसी से छिपा नहीं है । इन मानव मूल्यों के अवमूल्यन को कवि ने शब्दों में कविता का रूप दिया है ।
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कृष्ण कुमार यादव ने “अभिलाषा” में कविता को वस्तुमत्ता तथा समग्रता के बोध से साधारण को भी असाधारण के अहसास से यथार्थ दृष्टि प्रदान की है, जो प्रगतिशीलता चेतना की आधुनिकता बोध से युक्त चित्तवृत्ति का प्रतिबिंब है । इसमें कवि मन भी है ओर जन मन भी । मनुष्य इस संसार में सामाजिकता की सीमाओं में अकेला नहीं रहता । उसके साथ समाज रहता है, अत: अपने संपर्कों से मिली अनुभूति का आभ्यन्तरीकरण करते हुए कवि ने अपनी भावना की संवेदनात्मकता को विवेकजन्य पहचान भी प्रदान की है । रूढ़ि और मौलिकता के प्रश्नों से ऊपर उठकर जब हम इन कविताओं को देखते हैं तो लगता है कि सहज मन की सहज अनुभूतियों को कवि ने सहज रूप से सामयिक-साहित्यिक सन्दर्भों से युग-बोध भी प्रदान करने का प्रयास किया है । दायित्व-बोध और कवि कर्म में पांडित्य प्रदर्शन का कोई भाव नहीं है, फिर भी यह तो कहा ही जा सकता है कि विचार को भाव के ऊपर विजय मिली है । कविता समकालीन लेखन और सृजन के समसामयिक बोध की परिणति है सो ''अभिलाषा'' की रचनाएँ भी इस तथ्य से अछूती नहीं हैं ।

भाषा और शब्द भी आज के लेखन में अपनी पहचान बदल रहे हैं । वह “वो” हो गया है, वे और उन का स्थान भी तद्भव रूपों ने ले लिया है । श्री यादव ने भी अनेक शब्दों के व्याकरणीय रूपों का आधुनिकीकरण किया है ।

वैश्विक जीवन दृष्टि, आधुनिकता बोध तथा सामाजिक संदर्भों को विविधता के अनेक स्तरों पर समेटे प्रस्तुत संकलन के अध्ययन से आभासित होता है कि श्री कृष्ण कुमार यादव को विपुल साहित्यिक ऊर्जा संपन्न कवि ह्नदय प्राप्त है, जिससे वह हिंदी भाषा के वांगमय को स्मृति प्रदान करेंगे ।

समालोच्य कृति- अभिलाषा (काव्य संग्रह)
कवि- कृष्ण कुमार यादव
पृष्ठ- 144, मूल्य- 160 रुपये


प्रकाशक - शैवाल प्रकाशन, डी.आई.जी. आवास के सामने, दलान से नीचे, चंद्रावती कुटीर, दाऊदपुर, गोरखपुर -273 001
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